पृष्ठ:लालारुख़.djvu/५९

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नूरजहाँ का कौशल शाहजादे ने बादशाह की ओर साककर कहा-“जहाँपनाह !" बादशाह ने नोची नजर करके कहा-"शाहजादा खुर्रम, दुमने जो कैफियत लिख भेजी थी, उसे यहाँ दुहरा दो।" क्षणभर शाहजादा नीचा सिर किए सोचते रहे, फिर उन्होंने बादशाह को लक्ष्य करके कहा-"जहाँपनाह, कैफियत मुझे किसके सामने देनी होगी, शाहंशाहाहन्द जहांगीर के सामने था कि शेर अभयान की विधवा के सामने?" नूरजहाँ ने गुस्से से होठ काटकर कहा -"तुम्हें यह न भूलना चाहिए कि तुम मुजरिम और शाही गुनहगार हो ।” शाहजादे ने उस पर ध्यान न देकर बादशाह से कहा- "क्या जहाँपनाह सचमुच मुझसे कैफियत चाहते हैं ? "हाँ, चाहता हूँ ! "तब मेरा कुसूर माफ करने के बहाने यहाँ बुलाकर कैद करना ही आपका मकसद था ?" नुरजहाँ ने त्योंरियों में बल डालकर कहा-"तुम किससे बातें कर रहे हो शाहजादा ? "अपने पिता से "मगर लखते-मुगलिया की हुकूमत मेरे हाथ में है। मैं तुम्हें एक साल की कैद का हुक्म देती हूँ। महावतखाँ, शाहजादे को गिरफ्तार करो महावत्तखाँ अब तक चुपचाप खड़े थे। अब उन्होंने दृढ़ स्वर में कहा-"माफ़ कीजिएगा मलिका साहबा, मैं शाहजादे को यह पाबान देकर लाया हूँ कि आरके सब कुसूर माफ किए जायँगे। ऐसी हालत में शाहजादे को गिरफ्तार करना धोके बाज़ी है, जिसमें बन्दा शरीक होने से इनकार करता है।"