पृष्ठ:लालारुख़.djvu/६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नूरजहाँ का कौशल नूरजहाँ ने कहा-"जहाँपनाह ! ये दस्तखत आपके हैं ? बादशाह चुप रहा नूरजहाँ ने कहा-"समझ गई, तब वह जाल नहीं है ! यही मैं जानना चाहती थी। मेरे खाविंद, में मरने को तैयार हूँ, मगर हुजूर एक बार उन हाथों को दीजिए, जिन्होंने मुझे प्यार किया था, और जिन्होंने मेरे मौत के परवाने पर दस्तखत किए हैं। इतना कहकर वह बादशाह की तरफ झपटी। बादशाह ने कसकर उसे छातो से लगा लिया, और भरे हुए कंठ से कहा-"नूर, मैंने दस्तखत नहीं किए हैं। तुमने सैकड़ों कुसूर किए, ये मेरे प्यारे बच्चे का खून किया- मैंने कब इसे देखा, तब ये दस्तखत मेरे कैसे हो सकते हैं ! मेरे हाथों ने दस्तखत किए जरूर हैं, पर हैं ये महावतस्त्रा के दस्तखत नूरजहाँ ने एक बार महावतखाँ की ओर देखा, और सिर झुका लिया। वह धीरे-धीरे बादशाह के बाहु-पाश से पृथक् हुई, और फिर महावतखाँ के सामने खड़े होकर बोली-"महावत, अब तुम मुझे कत्ल करो। पर एक औरत पर फतह हासिल करके तुम कुछ सुखरू न होगे। खैर ।" नूरजहाँ और कुछ न कह सकि वह टप टप आँसू गिराने लगी। शायद नूरजहाँ ने जिंदगी में पहली बार ही आँसू गिराए थे। बादशाह से न रहा गया। उन्होंने अवरुद्ध कंठ से कहा- "महावत ! "जहाँपनाह !" "नूरजहाँ की जान बख्श दो। मैं तुमसे यह भीख माँगता हूँ