पृष्ठ:लालारुख़.djvu/६८

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चतुरसेन की कहानियाँ "और" "वह जहाँपनाह की आड़ में मनमाना जुल्म करती हैं इससे हुजूर के शाही रुतबे और नेकनामी में खलल पहुँचता है।" "और "बस, हुजूर अगर इनका सुबूत चाहें, तो...." इन बातों को जानता हूँ, सच है।" "इन कुसूरों की सना मौत है...." "महावत...." "हुजूर, इंसान की दुहाई है। यह मलिका के कत्ल क हुक्मनामा है। दस्तखत कीजिए " "महावत.... "हुजूर, गुनाह साबित है, इंसाफ कीजिए।" "तब लाओ।" जहाँगीर ने दस्तखत कर दिया, और कहा- महावत, अब और क्या चाहते हो ?" "कुछ नहीं जहाँपनाह ! अब आप आराम फर्मावें।" Alle 9 जहाँगीर और नूरजहाँ दो पृथक्-पृथक् खेमों में नजरबंद थे। दोनों पर सख्त पहरा था, परंतु उनके आराम का काफी- बंदोबस्त किया गया था। नूरजहाँ ने महावत से कहला भेजा-"मैं मरने को तैयार हूँ, मगर एक बार बादशाह को देखना चाहती हूँ। महावतखाँ बादशाह की अनुमति पाकर उसे शाही डेरे में -ले पाए । जहाँगीर ने उसे देखते ही आँखें नीची कर ली। ६०