पृष्ठ:लालारुख़.djvu/७२

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दे खुदा की राह पर भाग्य की मार से वेन्स एक अन्धे, लाचार, बूढ़े शाहज़ादे भिखारी का रेखाचित्र है, जो अन्त तक शाहजादे का दिल रखता रहा। कहानी को एक चरित्रवान् तरुण ने अपने अादर्श त्याग और निष्ठा से बहुत उज्ज्वल किया है। पूरी कहानी एक मोहक संगीत के समान है ] $ मैं उसे बहुत दिनों से उसी स्थान पर बैठा देखा करता था। वह जामे मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे, एक कोने में बैठा रहता था। उसके हाथ में एक पुरानी ऊनी टोपी थी, उसी को वह भिज्ञापान की भाँति काम में लाता था। उसकी अवस्था सत्तर को पार कर गई थी, फिर भी वह खुद मजबूत दिखाई पड़ता था। उसका कंठस्वर सतेज और गंभीर था। उसके चेहरे पर एकाध चेचक के दाग थे। उसके मुँह से निकले हुए शब्द 'दे खुदा की राह पर' ही सदा सुन पड़ते थे, दूसरे शब्द बोलना वह जानता था या नहीं, कह नहीं सकते। उससे कोई कभी बात नहीं करता था। बातें करने पर वह कभी जवाब भी नहीं देता था। लोग उसे बहुधा पैसे दे देते थे। पैसा टोपी में डालने पर उसने कभी किसी को आशीर्वाद नहीं दिया। परन्तु उसके चेहरे के भाव, जो निरंतर अमिट रूप से बने रहते थे, देखकर अनायास ही मनुष्य की उस पर श्रद्धा हो जाती थी। संभव है,