पृष्ठ:लालारुख़.djvu/८३

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। - दे खुदा की राह पर "नहीं" रजिया की आँखों में आँसू और होठों में हँसी थी। वह लिपट पाई। मैंने कहा "रजिया 'बड़े भाई का कुछ लिहाज करो। दर्द सिर्फ तुम्हारे ही दिल में नहीं, दूसरी जगह भी है, पर जो हो गया, सो हो गया। रजिया ने बहुत समझाया, पर मैं न माना। "एक बार 'बड़े भाई' कह दो, तो जाऊँ ।" रजिया रोते रोते धरती पर लोट गई। उसने कहा "बड़े भाई, फिर यहीं रहो, जाते कहाँ हो।" "बहन के घर कैसे रहूँ" रजिया ने आँसू पोंछकर कहा "तब जाओ बड़े भाई" मैं घर चला आया। वही मेरी नौकरी थी। मेरे रोम-रोम में रजिया थी, और जिया के रोम-रोम में "बड़े भाई।" X X X आज तीस साल इस घटना को हो गए हैं। रजिया की आयु पचीस वर्ष की हो गई है, मैं तिरसठ को पार कर चुका हूँ। हम दोनों ने ब्याह नहीं किया। मैं साल में एक बार रजिया के घर जाता है। उसकी सब आमदनी सार्वजनिक कामों में जाती है। सरकार से उसे बेगम की उपाधि मिली। अब मुझे पेन्शन मिलती है। बूढ़े शाहजादे का वह चित्र सदैव मेरी आँखों में रहता है।