पृष्ठ:लालारुख़.djvu/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पतिता [एक वेश्या का मर्मस्पशी जीवन-स्केच इस कहानी में है। यह स्केच साधारण नहीं है, इसमे जैसे करोड़ों इन पतिता अभागिनियों के सुख दुःखो की एक परिपूर्ण मूर्ति खड़ी कर दी गई है ! यह एक विवरणात्मक कहानी है, जिसे कहानीकला की दृष्टि से श्रेष्ठ कहानियों में गिना जा सकता है। कहानी की सफलता इसी में है कि पाठक का हृदय बरबस इन पनिता बहिनों की दुरवस्था ते द्रवित होकर उनके प्रति गहरी संवेदना और सहानुभूति से भर जाता है।] १ - " मेरा नाम आनन्दी है। जब मेरी आयु ११ वर्ष की थी, मैं अपनी मौसी के साथ दिल्ली आई। मैंने कभी दिल्ली देखी न थी, सुनी थी। बहुत तारीफ सुनी थी-बिजली की रौशनी, ट्राम, पढे, मोटर-सब कुछ मेरे लिए स्वप्र-सा था। अब तक मैं देहात में रही, पहाड़ में खेली और बड़ी हुई। मेरे माँ-बाप ज़मींदार थे, नाम जबान पर लाना नहीं चाहती, मैं कलङ्कित हुई, उन्हें क्यों बट्टा लगाऊँ ? मैं उनकी इकलौती बेटी थी, गोदों में पली और प्यार में नहाई, मेरे बराबर सुखी कौन था ? जब मैं सुनहरी धूप में तितली की तरह उछलती-कूदती सामने की हरी-भरी पर्वत श्रेणियों पर दौड़-धूप करती थी, मेरी पड़ोसिने गीत गाती, घास का गट्ठर पीठ पर लादे मेरे सामने