पृष्ठ:लालारुख़.djvu/९५

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पतिता का क्या मतलब ! मैंने पूछा-नौकर रखने से क्या मतलब ? मैं किसी की नौकरी न करूँगी ! वाह ! अब मैं भाई, लगाऊँगी और किसी की नौकरी करूंगी। बुढ़िया हँस पड़ी, हँसते-हँसते लोट गई, उसने मुझे गोद में छिपा कर कहा- मेरी प्यारी बेटी, कैसी नादान है। धीरे-धीरे सब समझेगी ! झाड़, तू लगावेगी ? वहाँ बीस दासी तेरी जिद- मत करेंगी। मैं समझ ही न सकी, पर मुझे आनन्द न पाया। और चिन्ता में पड़ गई, वहाँ मेरा है कौन ? मुझे औन प्यार करेगा, कौन क्या करेगा, मैं वेचैन हो गई। मैं मूर्खा, इस वृद्धा को ही अपना सब से बड़ा हितू समझती थी। जहाँ गई वहाँ फाटक पर पहुँचते ही मेरे होश उड़ गए। ऐसी बड़ी कोठी, ऐसा सुन्दर बागीचा, जन्म में न देखा था। गाड़ी पहुँचते ही सङ्गीन- धारी सिपाही ने गाड़ी रोक कर पूछा-गाड़ी में कौन है ? मौसी ने कुछ कान में कह दिया, वह रास्ता छोड़ कर खड़ा हो गया। गाड़ी धड़धड़ाती चली। फव्वारे उछल रहे थे, अत्यन्त सुघड़ाई से कटी थी और उनमें कटोरे के बराबर गुलाब खिल रहे थे। सुन्दर साफ सुर्ख सड़कें और सामने बह महा- सुन्दर धवल प्रासाद । वहाँ पहुँचते ही दो सन्तरियों ने हमें उतारा, तमाम मकान सङ्गमर्मर से मढ़ा था, मक्खी के भी पैर रपटें । मैं डरती-डरती पैर रखती, दीवारों और तस्वीरों को देखती, अचल खड़े सन्तरियों को धूरती चली जा रही थी। चलने तक की आहट न होती थी, सोच रही थी कि हे ईश्वर ! इस महल में रहने वाला कौन भाग्यवान है।