आबादी में इतनी कमी कैसे हुई, इसके कारण सुनिये। सरकार फरमाती है कि—
पिछले दस सालके मध्यतक फसल अच्छी हुई। बारिश भी ख़ासी हुई। कोई रोग-दोष भी वैसे नहीं हुए। अतएव प्रजा-वृद्धिके प्रायः सभी सामान काफ़ी थे। उसीसे १९१३ ईसवीमें ख़ूब बच्चे पैदा हुए और मृत्यु-संख्या भी कम ही रही। पर १९१८ में इनफ्लूएंज़ाने ग़ज़ब ढा दिया। मृत्यु-संख्या पिछले सालसे दूनी हो गई। १९१८ के कुछ ही महीनोंमें सिर्फ ब्रिटिश-गवर्नमेंटके शासित प्रदेशोंमें ७० लाख आदमियोंके लिए लोगों को "राम-नाम सत्य है"—इस वाक्यका उच्चारण करना पड़ा। इस मारक रोगके कारण प्रजाकी जनन-शक्ति भी कम हो गयी। फल यह हुआ कि १९१८ और १९१९ में जितने आदमी मरे उससे बहुत कम पैदा हुए। १९१७ और १९१८ में प्लेगने भी बहुतकुछ जन-नाश किया। हैज़ेने भी बहुतोंको यमपुरीको पधसया। दादमें खाज यह हुई कि पिछले वर्षोंमें जहां-तहां अवर्षणने भी भारतपर भारी कृपा की। इसीसे भारतकी मनुष्य-संख्या बढ़नेके बदले बहुत कुछ घट गयी। इसे जी चाहे दैवदुर्विपाक समझिये; जी चाहे भारतका दुर्भाग्य। जगन्नियन्ताको यही मंजूर था। प्लेग, इनफ्लूएंजा और अवर्षण दैवी-दुर्घटनाएं हैं। उन्हें दूर करना मनुष्यके वशकी बात नहीं।
सरकारने ये पिछली बातें यद्यपि खुले शब्दोंमें नहीं कहीं, तथापि उसके लिखनेके ढङ्गसे यही जान पड़ता है कि मारक रोगों और अवर्षणोंकी मारसे प्रजाकी यथेष्ट रक्षा कर सकना उसकी शक्तिके बाहरकी बात है।