निर्दिष्ट कारण या व्याधियाँ उपस्थित होनेपर भी वहाँ इतना नरनाश नहीं होता। वहां २४ घंटेमें सबके पेट कमसे कम २ दफे—अधिकांशके ३ दफे—भर जाते हैं। यहाँ, भारतमें करोड़ों आदमियोंको दिनमें एक दफे भी पेटभर खानेको नहीं मिलता। इससे वे अशक्त रहते हैं, रोगके साधारण धक्के से भी मर जाते हैं; प्रजोत्पादनकी शक्ति भी वे कम रखते हैं। राजाका कर्तव्य है कि वह इन कारणों को दूर करनेका यथेष्ट यन्न करे; क्योंकि अपनी रक्षाहीके लिए प्रज़ा उसे कर देती है। उसके दिये हुए कर-धनका अधिकांश फ़ौज-फाटा रखने और रेले बनानेहीमें खर्च कर डालना, राजाका प्रधान कर्तव्य नहीं। प्रधान कर्तव्य उसका है प्रजाको नीरोग रखना, बीमार पड़नेपर उसकी चिकित्साका प्रबन्ध करना, पानी न बरसने पर सिंचाईके साधन प्रस्तुत करना, भूखोंको पेट पालनेके द्वार उन्मुक्त करना और अशिक्षितोंको शिक्षा देना है। यदि ये सब बातें होतीं तो भारतकी आबादी बहुत बढ़ जाती, रोगोंसे इतना मनुष्य-नाश न होता, और यहाँके निवासी भी और देशोंकी तरह खुशहाल होते।
इस दफे़ की मनुष्य-गणनासे मालूम हुआ कि ३१,९०,७५,१३२ मनुष्योंमें १६,४०,५६,१९१ तो पुरुषजातिके हैं और बाकी १५,५०,१८,९४१ स्त्री-जातिके। अर्थात् पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां कम हैं। सूबे बिहार और मदरासको छोड़कर और सभी प्रान्तोंका यही हाल है। इन दो प्रान्तों में तो पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियाँ अधिक हैं, अन्यत्र सब-कहीं कम। यह कमी विचार करने योग्य है। सारे देशमें प्रायः १ करोड़ स्त्रियाँ कम हैं। स्त्रियों की संख्यामें विशेष कमी हो जानेसे