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लेखाञ्जलि

फ़ौज, रेल, जहाज और नौकर-चाकरोंकी तनख्वाहमें उड़ा देती है। जापानमें यह बात नहीं। वहाँकी गवर्नमेंटकी रियायासे करके रूपमें, जितना रुपया मिलता है उसका फी सदी १५ वह शिक्षा-प्रचारके काममें खर्च कर देती है। उसका यह खर्च भारतके खर्च से तिगुना है। इसीलिए हमारे देशकी गवर्नमेंटपर कोई-कोई यह लाञ्छन लगाते हैं कि वह हमें शिक्षित बनानेमें जान-बूझकर आनाकानी या शिथिलता कर रही है। यह ठीक हो या न हो, पर इसमें सन्देह नहीं कि जापानके मुकाबलेमें यहाँ शिक्षाके लिए बहुत कम खर्च किया जाता है। उसकी प्रचार-वृद्धिकी यथेष्ट चेष्टा नहीं की जाती। भारतमें जहाँ शिक्षाका खर्च फी आदमी आठ आने भी नहीं, वहाँ जापानमें आठ रुपया है।

एक बात और भी है। वह यह कि भारतमें छात्रोंकी फीस दिन-पर-दिन बढ़ती ही जाती है। पर जापानमें वह दिन-पर-दिन कम होती जाती है।

शिक्षाहीसे मनुष्य-जन्म सार्थक होता है। उसीसे मनुष्य अपनी सब प्रकारकी उन्नति कर सकता है। उसीकी दुरवस्था देख किस समझदार भारतवासीको परमावधिका परिताप न होगा।

[जनवरी १९२७]