भारतवर्षमें कृषकोंकी दुरवस्था और निधनताके कई कारण हैं। एक तो यहां किसानोंमें शिक्षाका अभाव है। दूसरे यहाँकी गवर्नमेंटने देशके कुछ अंशको छोड़कर अन्यत्र सभी कहीं भूमिको अपने अधिकारमें कर रक्खा है। वही उसकी मालिक बनी बैठी है। अतएव उसने भूमिके लगान और मालगुजारीके सम्बन्धमें जो कानून बनाये हैं वे बहुत ही कड़े हैं। फिर जहाँ-कहीं तअल्लुकेदारियां हैं वहां किसानोंके सुभीतेका कम, तअल्लुकेदारोंके सुभीतेका अधिक खयाल रखा गया है। यही सब कारण हैं जो किसानोंको पनपने नहीं देते।
जितने सुशिक्षित और सभ्य देश हैं वे वैज्ञानिक ढङ्गसे कृषि करते हैं। फल यह हुआ है कि वे मालामाल हो रहे हैं। पर मारतमें शिक्षाके अभाव अथवा कमी तथा निर्धनताके कारण इस प्रकारकी नवाविष्कृत खेती हो ही नहीं सकती। हाँ, जो लोग पढ़े-लिखे और साधन-सम्पन्न हैं वे यदि चाहें तो पश्चिमी देशोंके ढङ्गकी खेती करके बहुत लाभ उठा सकते हैं। परन्तु, खेद है, उनका भी झुकाव इस तरफ नहीं। इसे ईश्वरी कोप ही कहना चाहिये। जबतक देशकी यह दशा रहेगी—जबतक शिक्षित जन-समुदाय कृषि-कार्यकी ओर ध्यान न देगा—और जबतक अभिनव आविष्कारोंसे काम न लिया जायगा तबतक कृषिकारोंकी दरिद्रता दूर न होगी। देशको समृद्धिशाली करनेके लिए वैज्ञानिक प्रणालीसे कृषि करनेको बड़ी ही आवश्यकता है।
इस समय भारतकी जैसी अवस्था है, कोई ३०० वर्ष पहले