१८०७ ईसवीमें संयुक्त-देश (अमेरिका) के निवासियोंने भाफ़की शक्तिका ज्ञान प्राप्त किया और उससे काम लेनेकी ठानी। राबर्ट फूल्टन नामके एक आदमीने एक ऐसी नाव ईजाद की जो भाफ़की सहायतासे चलने लगी। उसमें उसने एञ्जिन लगाया और न्यूयार्क नगरसे अलबनी तक उसीपर उसने हडसन नदी पार की। उसके इस कार्य्यने अमेरिकावालों की आंखें खोल-सी दी। बस फिर क्या था, भाफ़की शक्ति मालूम हो जाने पर लोग भाफ़से चलनेवाले एञ्जिनोंके पीछे पड़ गये। जगह-जगह एञ्जिन लग गये और नये-नये कल-कारख़ाने खुलने लगे। खेतीके कामोंके लिए भी यही एञ्जिन लगाये जाने लगे। खेत काटना, भूसा उड़ाना, कटी हुई फ़सलोंको मांडना–ये सभी काम एञ्जिनों की सहायतासे होने लगे। वहांवालोंने पहले पानीसे काम लिया, फिर हवासे, फिर घोड़ों और कुत्तोंसे और तदनन्तर भाफ़से। अब तो वे लोग बिजली देवीको भी अपने वशमें किये हुए हैं और छोटे-बड़े हज़ारों काम उसीकी सहायतासे करते हैं।
अमेरिकाके कुछ बड़े-बड़े किसानोंकी ज़मीनके पास पानी प्रवाही झरने हैं। ये कृषिकार अब इस फ़िक्रमें हैं कि उन झरनोंकी जल-धारासे बिजलीकी शक्ति उत्पन्न करके उसकी सहायतासे कलें चलावें और उनसे खेतोहीके नहीं, अपने घरेलू काम भी निकालें। उनके इस उद्योगमें किसी-किसीको सफलता भी हुई है। वे लोग अब झरनों की बिजलीसे कृषिके उपयोगी यन्त्रोंका सञ्चालन करने भी लगे हैं। यह काम बड़े फ़ायदेका है। इसमें एक ही दफ़े कील-कांटों और