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पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१२८

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लेखाञ्जलि

मैशीनोंमें जो ख़र्च होता है वह होता है। पीछेसे इस काममें बहुत ही कम ख़र्च करनेकी ज़रूरत रह जाती है।

यह सब होनेपर भी, १८३७ ईसवी तक, अमेरिकामें खेतीके औज़ारों वगैरहमें विशेष उन्नति न हुई थी। भारतमें इस समय जैसे हल काम आते हैं, कुछ-कुछ उसी तरहके वहाँ भी काम आते थे। उनसे ठीक काम न होता देख इलिनाइसके जान डियर नामक एक लुहारने लोहेका एक हल ईजाद किया। उस समय वहाँके हल वज़नी होते थे। उनसे वहाँकी कड़ी ज़मीन अच्छी तरह जुतती भी न थी—उनके फाल ज़मीनमें गहरे न धंसते थे। डियरके लोहेके हलने इन दोषोंको दूर कर दिया। पहले तो लोगोंने उसकी इस ईजादकी दिल्लगी उड़ाई; पर जब उसके हलसे पहलेकी अपेक्षा बहुत अधिक और बहुत अच्छा काम होने लगा, तब वे लोग आश्चर्य्य-चकित होकर उसकी प्रशंसा करने लगे। कई साल तक इन हलोंकी बहुत ही कम बिक्री हुई। परन्तु ज्यों-ज्यों उनकी उपयोगिता लोगोंके ध्यानमें आती गयी, त्यों-त्यों उनका प्रचार बढ़ता गया। १८३७ से १८३९ ईसवी तक जान डियरके बनाये बहुतही कम हल बिके। उसके बाद उनकी बिक्री बढ़ी और कोई १८ वर्षके भीतर ही डियरके कारख़ाने में, हर साल दस हज़ार तक हल बनकर बिकने लगे। अब तो डियरका कारख़ाना बहुत ही बड़े पैमानेमें काम कर रहा है। वह इलिनाइस रियासतके मोलिन नामक स्थानमें है। उसमें एक हल तैयार होनेमें सिर्फ ३० सेकंड लगते हैं। हर फ़सलमें यह कारख़ाना कमसे कम दस लाख फाल तैयार करता है। उसमें कोई डेढ़ हज़ार आदमी काम करते हैं। हर