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लीग आफ़ नेशन्सका ख़र्च और भारत

आप देखिये कि पहलेके चार धुक्कड़ोंके साथ बेचारा भारत भी बांध दिया गया है। इतने बड़े चीनको भी उससे कम ही खर्च देना पड़ता है, पर भारतको इटली जौर जापान के सदृश बलवान् राष्ट्रोंके प्रायः बराबर—कुछ यों ही कम—रुपया फूँकना पड़ता है। जर्मनीको भी अब शायद भारतसे अधिक खर्च न देना पड़ेगा। सो जो देश सर्वतन्त्र-स्वतन्त हैं और जिनकी बलवत्ताका आतङ्क सारे संसारमें छाया हुआ है उनके बराबर बैठनेका झूठा गौरव प्राप्त करके भारतके कङ्गाल कृषकोंका आठ लाखसे भी अधिक रुपया स्विट्ज़रलेंडके एक नगरको हर साल भेज दिया जाता है।

स्विट्ज़रलेंडमें लीगकी बड़ी-बड़ी इमारतें हैं। उनमें लीगके कितने ही दफ्तर हैं। इन दफ्तरोंमें बहुतसे अफ़सर और सैकड़ों कर्मचारी काम करते हैं। यह सवा करोड़से भी अधिक रुपया प्रायः उन्हींकी जेबोंमें जाता है। पर इन दफ्तरोंमें जहाँ अन्यान्य देशोंके निवासी सैकड़ों कर्म्मचारी काम करते हैं वहां गौरवकी गुरुतासे झुकी हुई पीठवाले भारतके सिर्फ़ ३ मनुष्य काम करते हैं। कुछ बड़े-बड़े देशोंके निवासी कर्म्मचारियोंकी संख्या नीचे दी जाती है—

देश कर्म्मचारियोंकी संख्या
ग्रेट ब्रिटन २२१
फ्रांस १८०
इटली ३४
स्पेन १०