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पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१४६

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लेखाञ्जलि

उसमें वे सभी चीजें रक्खी जायँगी जिनका सम्बन्ध उष्ण देशमें होनेवाले रोगोंसे है।

इस स्कूलकी प्रस्तुत रिपोर्ट में इसके एक बड़े ही महत्त्वशाली विभागकी कुछ बातों का उल्लेख है। उस विभागका नाम है, फरमाकोलाजी (Pharmacology) अर्थात् ओषधि-निर्माण-विद्या। और-और विभागोंकी तरह इस विभागका भी एक परीक्षागार (Laboratory) जुदा है। पर और विभागोंके परीक्षागारोंसे यह परीक्षागार अधिक महत्त्व रखता है। इसमें सभी तरहके आवश्यक यन्त्र और अन्यान्य सामग्रियाँ हैं। इसके प्रधानाधिकारी हैं मेजर चोपड़ा। आप पंजाबी मालूम होते हैं। डाक्टरीकी उच्च शिक्षा पाने और उच्चपदस्थ होनेपर भी आपमें स्वदेश-प्रेमकी मात्रा बहुत काफी मात्रामें विद्यमान जान पड़ती है। डाक्टरी विद्यामें निपुण होनेपर भी आप स्वदेशी ओषधियों के निर्माण और प्रचारके बड़े पक्षपाती हैं। इस देशकी ओषधियोंके गुण-दोषोंकी जाँच करनेके लिए गवर्नमेंटने जो कमिटी बनाई थी उसके एक मेम्बर आप भी थे। उस कमिटीके मेम्बरकी हैसियतसे आपने बहुत काम किया है और अनेक स्वदेशी ओषधियोंके रोग-नाशक गुणोंको आपने क़बूल किया है। इस कमिटीने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि वैद्यक और यूनानी चिकित्सा अवैज्ञानिक नहीं। अतः गवर्नमेंटको चाहिये कि वह इन चिकित्साओंको भी दाद दे।

स्कूलमें जो काम मेजर चोपड़ाके सिपुर्द है उसे तो आप करते ही हैं। साथही आप इस देशकी जड़ी-बूटियोंकी परीक्षा भी, वैज्ञानिक