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देशी ओषधियोंकी परीक्षा और निर्माण

ऐसे कथनको डाक्टर नहीं मान सकते, क्योंकि उनके शास्त्रमें जलोदर आदि मुख्य रोग नहीं माने गये; वे तो अन्य रोगोंक चिह्न या लक्षणमात्र माने गये हैं। इस दशामें जबतक यह बात वैज्ञानिक रीतिसे नहीं प्रमाणित की जाती कि हृदय, गुर्दे, यकृत आदिपर इन ओषधियोंका क्या असर पड़ता है तबतक विज्ञानवेत्ता डाक्टर इनके गुणोंके विषयमें किये गये दावेको भ्रान्तिरहित नहीं समझ सकते। हम यह नहीं कहते कि प्राचीन वैद्यों और हकीमोंके दावे सही नहीं। हम तो केवल इतना ही कहते हैं कि बिना जाँच और तजरुबेके हम किसीके कथन-मात्रपर पूरा विश्वास नहीं कर सकते। विश्वास जमानेके लिए प्रमाण दरकार होता है। वह प्रमाण आप डाक्टरोंको दोजिये। तभी वे इन ओषधियोंके पूर्वोक्त गुणोंके कायल हो सकते हैं।

तिब्बी और वैद्यक चिकित्साके प्राचीन ग्रन्थोंमें जिन ओषधियोंकी योजना लिखी है, बहुत सम्भव है, उनकी जाँच योग्यतापूर्वक की गयी हो और उनका यथेष्ट ज्ञान प्राप्त करके तब उनके रोग नाशक गुणोंका निश्चय किया गया हो; क्योंकि प्राचीन वैद्य और हकीम वैज्ञानिक जाँच भी करते थे। पर क्या यह बात सभी ओषधियोंके विषयमें कही जा सकती है? नहीं, बात ऐसी नहीं। आज-कल तो देशमें जितनी जड़ी-बूटियाँ पायी जाती हैं प्रायः सभीमें किसी-न-किसी रोगनाशके गुण बताये जाते हैं। इस तरहकी ख्यातिका कारण जनश्रुतिके सिवा और कुछ नहीं। किसीने को-जड़ी-बूटी देकर किसी रोगीका कोई रोग दूर कर दिया। बस उसने यह समझ लिया कि वह बूटी उस रोगकी रामबाण ओषधि है। वह