छोटे-छोटे मामले-मुकद्दमे सुननेका अधिकार दे दो। बहुत समयतक इस सम्बन्धमें जद्दोजेहद होनेपर गवर्नमेन्टका आसन थोड़ा-सा डिगा और उसने प्रजाके प्रतिनिधियोंकी बात मान ली। प्रायः सभी प्रान्तोंमें सरकारी पञ्चायतें खोल दी गयीं। उनके अधिकार और सङ्घटन आदिके नियामक कानून भी बन गये। पर प्रत्येक प्रान्तका नियमन जुदा रहा। किसी प्रान्तकी पञ्चायतोंको कुछ कम अधिकार मिले, किसी प्रान्तकी पञ्चायतोंको कुछ अधिक। उनके सङ्घटन आदिमें भी कुछ-न-कुछ भिन्नता रही। शासकोंने इस तरहके प्रान्तिक कानून बनाकर गोया देहातियोंपर बड़ा एहसान किया और स्वराज्य सञ्चालनका काम, थोड़े पैमानेमें, करना सीखनेके लिए गोया उन्होंने दरवाज़ा खोल दिया। एतदर्थ धन्यवाद। संयुक्त-प्रान्तके लेजिस्लेटिव कौंसिलने इस विषयका जो क़ानून बनाया है उसका नम्बर ६ है। वह सन् १९२० ईसवीमें बना था। अर्थात् उसे बने कोई सात-आठ वर्ष हुये। उसकी मुख्य-मुख्य बातोंका उल्लेख, इस मतलबसे, नीचे किया जाता हैं जिसमें जहाँ ऐसी पञ्चायतें न खुली हों वहाँवाले उन्हें खुलाकर अपना राज्य आप ही सञ्चालन करनेकी वर्णमाला सीखनेकी चेष्टा करें।
पञ्चायतोंका खोला जाना।
जिस ज़िले या जिलेके जिस हिस्सेमें पञ्चायत ऐक्ट जारी कर दिया जाता है उसके किसी भी मौज़े में पंचायत खुल सकती है। अगर मौज़ा छोटा है तो पास-पड़ोसके कई मौज़ोंको मिलाकर पञ्चायतका एक हलका मुक़र्रर कर दिया जाता है। पञ्चायतका दफ़्तर