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लेखाञ्जलि

अधिकार भी ख़ास-ख़ास पञ्चायतोंको दिये जा सकते हैं। शर्त यह है कि गवर्नमेंट इस बातकी मंज़ूरी पहिलेसे दे दे और बतला दे कि अमुक-अमुक पञ्चायतको ये अधिकार दिये जाते हैं।

अगर किसी नालिश या मुक़द्दमे में पञ्चायतका कोई पञ्च फरीक़ हो या उससे निजका कुछ सम्बन्ध रखता हो तो वह उस नालिश या मुक़द्दमेकी कार्‌रवाईमें शरीक न हो सकेगा और किसी तरहकी राय (वोट) न दे सकेगा। मुक़द्दमों और नालिशोंका फैसला कसरतरायसे होता है। यदि विपक्ष और पक्षमें बराबर बराबर रायें हों तो सरपञ्चको एक और राय (अर्थात् क़तईराय-Casting vote) देनेका अधिकार है।

पञ्चायतोंमें जो नालिशें दायर की जाती हैं उनमें मुद्दईको पूरा दावा दाख़िल करना पड़ता है। कल्पना कीजिये कि देवदत्तको शिवदत्तसे ३) पाना है। अतएव वह उतने का दावा नहीं दायर कर सकता। क्योंकि साधारण पञ्चायतोंको २५) से अधिककी नालिशें सुननेका अधिकार ही नहीं। अगर देवदत्त चाहे कि २५) का दावा आज करे और उसकी डिगरी हालिस कर लेनेपर, बाक़ीके २५) का दावा फिर कभी, तो वह यह नहीं कर सकता। हाँ अगर वह ५०) मेंसे २५) छोड़ दे तो बाक़ीके २५) की नालिश वह कर सकता है। मतलब यह है कि जिसे पञ्चायतोंसे फ़ायदा उठाना हो और मुंसिफ़ी अदालतमें जाकर ज़ेरबारी और ख़र्चसे बचना हो वह अपने दावेका कुछ हिस्सा छोड़कर २५) तककी नालिश कर सकता है। छोड़े हुए रुपयेका दावा फिर कभी किसी भी अदालतमें नहीं दायर हो सकता। -