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लेखाञ्जलि

दक्षिणासे प्रसन्न हो जायँ। अतएव इस क़ानूनके बन जानेपर किसानोंका बहुत बड़ा हक़ मारा जायगा। जितनी ज़मीनपर इस समय इन लोगोंका मौरूसी हक़ है उसमें भी दिन-पर-दिन कमीही होती जानेके साधन इस क़ानूनके मसविदेमें मौजूद हैं। इस कारण सम्भावना यही है कि ज़मींदार इन लोगोंके मौरूसी खेतोंको, मौक़ा मिलते ही, छीनते चले जायँगे। सो मोरूसी हक़ अधिक मिलनेके साधन बढ़ाना तो दूर रहा, बन जानेपर यह क़ानून वर्तमान साधनोंका भी संहार क्रम-क्रमसे करता जायगा।

इस दशामें क्या करना चाहिये। कौंसिलमें किसानोंके जो प्रतिनिधि पहले थे उन्होंने अपने कर्तव्यका पालन नहीं किया। नये कौंसिलमें जो लोग प्रतिनिधि बनकर गये हैं उनसे भी विशेष आशा नहीं। इस कौंसिलको बने एक साल हो चुका। इस इतने समयमें इन लोगोंमेंसे दो-चारको छोड़कर और किसीने भी किसानोंके मतलबका कोई प्रश्न तक गवर्नमेंटसे नहीं किया। कोई प्रस्ताव उपस्थित करना और क़ानूनमें लाभदायक तरमीम करानेके लिए चेष्टा काना तो दूरकी बात हैं। अबतक तो इनमेंसे अधिकांश मेम्बर अर्थात् स्वराजी किसानोंके लिए कुछ सुभीतोंकी माँग पेश करना या इसलिए कोई प्रस्ताव ही उपस्थित करना अपने उसूलके खिलाफ़तक समझते थे। असहयोगी ठहरे न! बताइए, फिर क्यों आप किसानोंके प्रतिनिधि बने थे? आप अपने उसूलोंकी पाबन्दीके बलपर जबतक स्वराज्य प्राप्त करके किसानोंके दुःख दूर करेंगे तबतक तो वे ख़ुद ही मर मिटेंगे। स्वराज्यका