पास अवलोकनार्थ भेजा। जब सब नमूने विशुद्ध स्वीकृत हो गये तब उनके आधारपर सिमेंट की बड़ी बड़ी मूर्तियां बनाई गई।
इन मूर्तियोंमें छिपकलीकी जानिके कई महाभयङ्कर प्राणियोंकी भी मूर्तियाँ हैं। ये प्राणी कोई ५० लाखसे लेकर एक करोड़ वर्ष पहले पृथ्वीपर जीवित थे। इन सबके चार-चार पैर होते थे। इनमेंसे कितने ही जीव इगुएनोडनकी तरह केवल पिछले पैरोंके बल भी चल सकते थे। किन्तु अधिकांश प्राणी चारों पैर ज़मीनपर रखकर ही चलते थे। जब वे ज़मीनपर घूमते थे तब कोई एक वर्ग गज़ भूमि उनके पैरों के नीचे छिप जाती थी। विद्वानोंका अनुमान है कि जल और थल, दोनोंजगह, रहनेवाले प्राचीन समयके जन्तुओं में यही जन्तु सबसे बड़े थे। इनके रूप और आकारमें परस्पर बहुत अन्तर होता था। किसीका चमड़ा चिकना होता था, किसीका ढालके चमड़े की तरह मोटा और सहन। इनमेंसे एक दो शाक-भोजी थे; शेष सब मांस-भोजी। उक्त पशु-शालामें डिप्लोडोकस नामक जन्तुकी भी एक मूर्ति है। उसकी भी लम्बाई ६६ फुट है । इस जन्तुका एक कङ्काल अमेरिका के एक आश्चर्यजनक पदार्थालयमें रक्खा है। यह मूर्ति उसीके आधार पर बनाई गई है। यह कङ्काल १८९६ ईसवीमें मिला था।
प्राणि-विद्याके वेत्ताओंने निश्चित किया है कि डिप्लोडोकसकी पूँछ छिपकलीकी पूँछकी तरह होती थी और खूब मोटी होती थी। उसकी गर्दन शुतुमुर्ग की गर्दनकी तरह लम्बी और लचीली होती थी। बदन छोटा, पर बहुत मोटा होता था। पैर हाथीके पैरोंकी तरह बड़े और मोटे होते थे।