सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२
लेखाजलि
 


जीवितावस्थामें इन जन्तुओंका वजन ६७५ से ८१० मनतक होता रहा होगा। ये जन्तु जलमें भी रहते थे और आवश्यकता होनेपर थलमें चले आते थे। किन्तु उथले जलमें रहना ये अधिक पसन्द करते थे और घास-पात आदि खाकर जीवन-निर्वाह करते थे। यद्यपि इन जन्तुओं का आकार चतुष्पाद जन्तुओंमें सबसे बड़ा था, तथापि ये आत्मरक्षा करनेमें असमर्थ थे। इसीसे बहुधा इनसे छोटे भी मांसभक्षक जन्तु इन्हें मार डालते थे। इनका मस्तिष्क बहुत छोटा होता था। इसी से शायद ये अपनी रक्षा न कर सकते थे, क्योंकि बड़ा मस्तिष्क आत्मरक्षा करनेकी अधिक शक्ति और अधिक बुद्धि रखनेका प्रदर्शक है।

इन प्रकाण्ड जन्तुओंके नामोंकी कल्पना यद्यपि अलग-अलग भी की गई है, तथापि ये सब एक ही साम्प्रदायिक नामसे अभिहित होते हैं। वह नाम है-दाइनोंसौर (Dionosaur) जो संस्कृतशब्द दानवासुरसे बहुत कुछ मिलता-जुलता है। यह नाम बहुत ही अन्वर्थक है। जीवधारियोंमें, उस समय, ये निःसन्देह असुर या दानव के अवतार थे।

उक्त पशुशाला में एक और जन्तुकी मूर्ति है। उसका नाम स्टेगोसौरस (Stegosaurs) कल्पित किया गया है। यह जन्तु अपनी श्रेणीके जन्तुओंमें सबसे अधिक बलवान् था। इसकी लम्बाई कोई २५ फुट थी। इसकी पीठपर बहुत कड़े छिलके या दायरेसे होते थे। कोई-कोई छिलका, व्यासमें, एक-एक गज होता था। इसकी पूछरर लम्बे-लम्बे आठ कांटे होते थे। इस अदभुत जन्तुके