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पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/१९५

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दण्ड-देवका आत्म-निवेदन

प्रसन्न करनेके लिए, दासोंपर कशाघात करनेकी पूर्ण व्यवस्था थी। दासियोंको तो एक प्रकारसे नङ्गीही रहना पड़ता था। वस्त्राच्छादित रहनेसे वे शायद कशाघातोंका स्वादु अच्छी तरह न ले सकें। इसीलिए ऐसी व्यवस्था थी। यहींपर तुम हमारे प्रभावका कहीं अन्त न समझ लेना। दासियोंको एक और भी उपायसे दण्ड दिया जाता था। छतकी कड़ियोंसे उनके लम्बे-लम्बे बाल बाँध दिये जाते थे। छतसे लटक जानेपर उनके पैरोंसे कोई भारी चीज़ बान्ध दी जाती थी, ताकि वे पैर न हिला सकें। यह प्रबन्ध हो चुकने पर उनके अङ्गोंकी परीक्षा करनेके लिए हमारी योजना होती थी। यह सुनकर शायद तुम्हारा दिल दहल उठा होगा और तुम्हारा बदन काँपने लगा होगा। पर हम तो बड़े ही प्रस सा ही दण्ड दासोंको भी दिया जाता था। परन्तु बालोंके बदले उनके हाथ बाँधे जाते थे।

इससे तुम समझ गये होगे कि रोमकी महिलाएं हमाग कितना आदर करती थीं। परन्तु यह बात वहाँके कर्तृपक्षको असह्य हो उठी। उन्होंने कहा—इस दण्ड-देवका इतना आदर! उन्होंने हमारी इस उपयोगितामें विघ्न डालनेके लिए कोई क़ानून बना डाले। सम्राट् आड्रियनके राजत्व-कालमें इस क़ानूनको तोड़नेके अपराधमें एक महिलाको पाँच वर्षका देश-निर्वासन दण्ड मिला था। अस्तु।

अब हम जर्मनी, फ्रांस, रूस, अमेरिका आदिका कुछ हाल सुनाते हैं। ध्यान लगाकर सुनिये। इन सब देशोंके घरों, स्कूलों और अदालतोंमें भी पहले हमारा निश्चल राज्य था। इनके सिवा संस्कार-