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लेखाञ्जलि

घरों (Houses of Correction) में भी हमारी षोडशोपचार पूजा होती थी। इन संस्कार-घरों अथवा चरित्र-सुधार-घरोंमें चरित्र और व्यवहार-विषयक दोषोंका सुधार किया जाता था। अभिभावक जन अपनी दुश्चरित्र स्त्रियों और अधीनस्थ पुरुषों को इन घरों में भेज देते थे। वहाँ वे हमारीही सहायता—हमारेही आघात—से सुधारे जाते थे।

जर्मनीमें तो हम पहले अनेक रूपोंमें विद्यमान थे। हमारे रुप थे कशादण्ड, वेत्रदण्ड, चर्म्मदण्ड आदि। कोतवालों और न्यायाधीशोंको कशाघात करनेके अख़तियारात हासिल थे। संस्कार-घरोंमें हतभागिनी नारियोंहीकी संख्या अधिक होती थी। वहाँ बहुधा निरपराधिनी रमणियोंको भी, दुष्टोंके फ़न्देमें फँसकर, कशाघात सहने पड़ते थे। पहले वे नङ्गी कर डाली जाती थीं। तब उनपर बेत पड़ते थे। जर्मन-भाषाके ग्रन्थ-साहित्यमें इस कशावातका उल्लेख सैकड़ों जगह पाया जाता है।

फ्राँसमें भी हमने मनमाना राज्य किया है। वहाँके विद्यालयों में, किसी समय, हमारा बड़ा प्रभाव था। विद्यालयोंमें कोमलकलेवरा बालिकाओंको भी हमें चूमना पड़ता था। यहाँतक कि उन्हें हमारा प्रयोग करनेवालोंका अभिवादन भी करना पड़ता था। फ्रांसमें तो हमने पवित्रहृदया कामिनियों के कर-कमलों को भी पवित्र किया था। आपको इस बातका विश्वास न हो तो एक प्रमाण लीजिये। "रोमन डि-लारोज़" नामक काव्यमें कविवर क्लपिनेलेने स्त्रियोंके विरुद्ध चार सतरें लिख मारी हैं। उनका भावार्थ कवि पोपके शब्दोंमें है—