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लेखाञ्जलि


की सहायतासे ऊपर लिखी हुई प्राचीन उक्तियों की सत्यता सिद्ध करना चाहते हैं, यहांपर हम उन्हीं लोगों की बातों पर विचार करते हैं।

इस दलके कुछ लोगोंका कथन है कि पृथ्वी के भीतरकी अग्नि ही पृथ्वी को ध्वंस करेगी, अर्थात् पृथ्वी अपने ही तापसे भस्म हो जायगी। इस तरह ऋषिवाक्य भी सत्य हो जायगा। परन्तु यह सिद्धान्त विज्ञान-सम्मत नहीं हो सकता; क्योंकि इस बात के कई प्रमाण पाये जाते हैं कि पृथ्वी के भीतर का ताप दिन-पर-दिन कम होता जाता है। इसलिए उसके द्वारा पृथ्वीका ध्वंस होना असम्भव है। इस दलके अन्य लोगों का मत है कि पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य्यसे हुई है। यह सूर्य ही अकस्मात् प्रज्वलित होकर पृथ्वीको ध्वंस कर देगा। वास्तवमें यही मत आलोचनाके योग्य है।

सौरजगत् में प्रायः हर साल तूफान आते हैं। उन्होंके कारण सूर्य में धब्बे दिखाई देते हैं। इसमें शक नहीं कि तूफान बड़े ही विकट और भयङ्कर होते हैं। लाखों मील दूर होनेपर भी उनका प्रभाव पृथ्वीपर पड़ता है। परन्तु ऐसे सौरोत्पातका एक भी लक्षण अबतक देखने में नहीं आया, जिससे पृथ्वीके एकदम ध्वंस हो जानेकी सम्भावना हो। इसलिए ऐसा मालूम होता है कि सूर्य केवल अपनी ही अग्निसे पृथ्वी को ध्वंस नहीं कर सकता। सूर्य्य तभी एकदम प्रज्वलित हो सकता है जब उसका सङ्घर्षण किसी बाहरी तारे या पिण्डके साथ हो। इसके सिवा किसी अन्य उपायसे पृथ्वीको ध्वंस करनेकी शक्ति रखनेवाला ताप सूर्यमें नहीं आ सकता।