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महाप्रलय


किसी नूतन तारेका आकस्मिक आविर्भाव ज्योतिषशास्त्र के इतिहासमें कोई नई बात नहीं। अभी कुछ ही वर्ष बीते होंगे, जब वृषराशिके पास एक नया तारा पैदा हो गया था। ज्योतिषियोंका कथन है कि दो अनुज्ज्वल तारोंके सङ्घर्षण से यह तारा उत्पन्न हुआ था। इसलिए क्या यह सम्भव नहीं कि हमारा सूर्य भी किसी ऐसे ही तारेसे धक्का खाकर जल उठे?

इस प्रश्नका उत्तर देना सहज नहीं। हम लोगों के पहचाने हए प्रायः सभी तेजस्क पिण्ड सौरजगत् से बहुत दूर हैं। यदि सूर्य हजारों वर्षतक उनकी ओर बड़ी तेजी से दौड़े तो भी उन्हें नहीं पा सकता। दक्षिणी आकाशकी एक राशिका एक तारा हमलोगों के अत्यन्त निकट है। ज्योतिषियों ने हिसाब लगाकर बतलाया है कि सूर्य यदि प्रति सेकेण्ड दस मीलकी चालसे उस निकटतम तारेकी ओर चले तो कोई अस्सो हज़ार वर्षमें उसके पास पहुंच सकता है। अस्सी हज़ार वर्ष बाद सूर्यका सङ्घर्षण किसी तारे के साथ होगा या नहीं, इसकी आलोचना यदि न की जाय तो भी कोई हर्ज नहीं। हाँ, दो चार हजार वर्षके अन्दर सौरजगत् में कोई विपद आवेगी या नहीं, इसकी आलोचना करना आवश्यक है।

ज्योतिषियों का कथन है कि आँखों या दूरबीन के द्वारा जितने तारे या ग्रह देखे जाते हैं उनके सिवा एक जाति के और भी पिण्ड है जो सदा आकाश में घूमा करते हैं। आकार-प्रकार में वे मामूली नक्षत्रों हीकी तरह हैं। उष्णता और प्रकाश फैलाते-फैलाते वे अनुज्ज्वल हो गये हैं। इसलिए हमलोग उन्हें नहीं देख सकते हैं। अत-