महीनेका दिन और छः महीनेकी रात। घड़ी देखकर ही वहाँ समयका अन्दाजा लगाया जाता और दिन-रातका अनुमान किया जाता है। सूर्यके प्रकाशसे चारों ओर फैली हुई बर्फकी राशियां जगमगाया करती हैं। यदि यात्री हरे रङ्गके ऐनक लगाकर इस चमकसे अपने नेत्रोंकी रक्षा न करे तो वह अन्धा हो जाय।
उत्तरी ध्रुवके पास पहुँच जानेवालेको दिशाओंका ज्ञान नहीं होता। उसको उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम, सभी दिशाएँ एकसी जान पड़ती हैं। वह जिस ओर जायगा उसे वह दक्षिण ही कहेगा। बात यह है कि सूर्य आकाशके मध्यबिन्दुके पास गोलाकार घूमा करता है। इसी कारण उत्तरी ध्रुवके पास पहुँचनेवाले यात्रीको सभी दिशाएं दक्षिण-ही-सी जान पड़ती हैं।
उत्तरी ध्रुवमें जब दिन होता है तब सर्वत्र प्रकाश-ही-प्रकाश दिखाई पड़ता है, और जब रात होती है तब भयङ्कर अन्धकारके अतिरिक्त और कुछ नहीं नज़र आता।
इस प्रदेशमें मनुष्यका नाम नहीं और वृक्षों तथा वनस्पतियोंका कहीं निशान तक नहीं। चारों ओर बर्फ और, दिन हुआ तो, प्रकाशके सिवा और कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं होता। अतिशय शीत और बर्फ के विकट तूफ़ानोंका सदा राज्य रहता है। पर पाश्चात्य देशोंके उत्साही, साहसी और कष्ट-सहिष्णु अनुसन्धान-कर्त्ताओंके वर्षों के निरन्तर परिश्रमकी बदौलत यह प्रदेश अब पहलेकी तरह दुर्भेद्य और दुर्गम नहीं रह गया। अब तो, कुछ समयसे, खोज करनेवालोंका एक-न-एक दल वहां जाया ही करता है।