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उत्तरी ध्रुवकी यात्रा

ओवरकोट (Overcoat) पहनना पड़ता है जिसके भीतर पानी न प्रवेश कर सके। फिर भी यदि शरीरका कोई भाग खुला रह गया तो सरदी अपना काम किये बिना नहीं रहती और मनुष्यकी जानके लाले पड़ जाते हैं। यदि राहमें जूता फट जाय। और दूसरा जूता पास न हो तो भी खै़र नहीं। जब बर्फका तूफ़ान ज़ोरोंसे चलता है तब यात्रियोंकी नाकसे खून बहने लगता है। हवा बहुत ज़ियादह ठण्डी होने और तेज़ीसे चलनेसे भी कभी-कभी मनुष्य मर जाता है। जब आदमीको सरदी लग जाती है तब उसे नींद बहुत आती है। उस समय यदि वह सो जाय तो उसके शरीरवर्ती रुधिरकी गति बन्द हो जाय और वह मर जाय।

प्रतिदिन यात्री कोई २० मीलकी यात्रा कर सकता है, अधिक नहीं। जहाँ ठहरना होता है वहां बर्फके झोंपड़े बना लिये जाते हैं। उनके भीतर यात्री तेल और स्पिरिट (spirit) की सहायतासे आग जलाते और उसपर चाय तैयार करते हैं। वहाँ पानी तो मिलता ही नहीं। आगसे बर्फ गलाकर ही पानी बनाया जाता है। रहनेके लिए बनाया गया बर्फका झोंपड़ा भी निरापद नहीं। उसे भी विपत्तिका घर ही समझना चाहिये। उसके नीचे यदि समुद्र हो और उसके ऊपरकी बर्फकी तह पतली हो, तो उसके फटनेका डर रहता है। यदि वह फट पड़े तो झोंपड़ोंके भीतर विश्राम करनेवाले यात्रियोंका फिर कहीं पता न मिले। ध्रुव-प्रदेशमें हमारे यहाँकी तरह दिन और रात नहीं होती। सालभरमें केवल एक ही दिन और एक ही रात होती है—अर्थात् छः