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पृष्ठ:लेखाञ्जलि.djvu/७३

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उत्तरी ध्रुवकी यात्रा

भोजनका ठीक प्रबन्ध न होनेके कारण यात्रियोंको बहुधा बड़ी-बड़ी विपत्तियोंका सामना करना पड़ता है। खाद्य पदार्थ चुक जानेसे कितने ही यात्रियों को अपने प्राणोंतकसे हाथ धोना पड़ता है। ऐसा भी हुआ है कि भूखके मारे लोग अपने कुत्तेतक मारकर खा गये हैं।

उत्तरी ध्रुवके पास ही, ग्रीनलैंडमें, स्कीमो नामकी एक मनुष्यजाति रहती है। यात्रामें इस जातिके मनुष्योंसे यात्रियों को बहुत सहायता मिलती है। बात तो यह है कि इन लोगों की सहायता बिना, सभ्य संसारका कोई मनुष्य इस प्रदेशकी यात्रा कर ही नहीं सकता। ये लोग उसी प्रदेशके रहनेवाले हैं और यहांकी भूमिके एक एक टुकड़ेसे जानकारी रखते हैं। इन लोगोंकी रहन-सहनका ढङ्ग बड़ा ही विचित्र है। सुनिये—

स्कीमो एक जगह टिककर कभी नहीं रहते। वे इधर-उधर घूमते ही फिरते हैं। आज यहाँ हैं तो कल वहाँ। माल-असबाब भी उनके पास बहुत नहीं होता। उनका रूप-रङ्ग मङ्गोल-जातिके आदमियोंसे कुछ-कुछ मिलता है। अन्तर इतना ज़रूर है कि वे रङ्गमें उतने गोरे नहीं होते। पुरातत्त्ववेत्ता लोगोंका ख़याल है कि स्कीमो लोग वहाँ किसी समय साइबेरियासे आये होंगे। जाड़ोंमें वे लोग मिट्टी और पत्थरके घर बनाते और उन्हींमें रहते हैं। परन्तु शीत कम होते ही वे अपने घर छोड़ देते और सील-नामक मछलीके चमड़ेके बने हुए तम्बुओंमें रहने लगते हैं। ग्रीनलैंडमें कस्तूरी-वृष (Musk Oxen) नामका एक जानवर होता है। वे उसका तथा वहाँके सफेद रीछ, खरगोश, हिरन आदि जानवरोंका शिकार करते