पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/११७

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34. असुरों का देश इस काल में भरत - खण्ड में असुरों के भी अनेक राज्य थे। परन्तु मूलत : असीरिया ही असुर भूमि थी । यह स्थान भूमध्य सागर के पूर्वी भाग में स्थित है । आजकल यह देश फारस और थोड़ा स्याम देश की सीमाओं के अन्तर्गत है । इसका यह नाम शेम के पुत्र असुर के नाम पर हुआ । इतिहासकार सैलिन का मत है कि असीरियन साम्राज्य की स्थापना ईसा से कोई ढाई हजार वर्ष पूर्व हई थी । यह असर साम्राज्य संसार की ऐतिहासिक सीमा में आए हुए तीन प्राचीनतम साम्राज्यों में एक था । इसकी आरम्भिक राजधानी असुर नगर था , जो असुर ने अपने नाम पर बसाया था । समय- समय पर इसकी भौगोलिक सीमा घटती गई । जब यह साम्राज्य उन्नति के शिखर पर था , उस समय इसका विस्तार भूमध्य सागर के दक्षिण से लेकर पूर्व में मनाई पर्वत तक था । मूल असीरिया की सीमा वर्तमान कुर्दिस्तान से मिलती - जुलती थी । उस समय यह उत्तर में जाग्रीस पर्वत तथा पश्चिम में दजला नदी तक को स्पर्श करता था । इस असुर - भूमि में पार्वत्य देश , समतल मैदान और कृषकोपयोगी भूमि भी देखने को मिलती थी । यहीं पर सिमरा नामक पर्वत से रात में प्रकाश निकलता दीख पड़ता है , जो वर्षाकाल में बढ़ जाता है । होमर ने अपने काव्य में इस देश को ऐसे राक्षस का रूपक देकर वर्णन किया है, जिसका सिर सिंह का , धड़ बकरे का और पूंछ सांप की हो । यहां के पर्वत अनेक खनिज पदार्थों से भरे पड़े हैं और मैदान चूना और बालू से । सेब, अंजीर, बड़ , बेर और ताल के वृक्ष पाए जाते हैं । कृषकोपयोगी भूमि में फसलें उपजती हैं । पहले घने जंगल भी थे । इस देश की जलवाय् भिन्न प्रकार की है । पहाड़ी हवा शीतकाल में ठंडी रहती है। बर्फ भी गिरती है, पर गर्मियों में पहाड़ तप जाते हैं । कहीं मौसम मध्यम रहता है। फरात , दजला और जैब यहां की प्रधान नदियां हैं । इसकी दोनों प्राचीन राजधानियां -निनवे और बेबीलोन क्रमश : दजला और फरात नदी पर स्थित थीं । फरात नदी तो बेबीलोन के बीच में होकर गई थी । कहा जाता है कि पहले यहां अकाद नाम की कोई पहाड़ी जाति बसती थी । बाद में उत्तर से सेमेटिक लोगों का आगमन हुआ । कुछ काल बाद ये दोनों जातियां परस्पर आचार विचार से मिल गईं । इन्हीं दोनों जातियों के मिश्रण से असुर जाति और आसुरी भाषा का निर्माणा हुआ। असुरों ही की एक शाखा सीरिया में जा बसी, जो फोनिशियन के नाम से प्रख्यात हुई। फोनिशियन बड़े नाविक , वणिक् व शिल्पकार थे। कुर्दिस्तान का प्राचीन नाम निमरी है। यह स्थान आरमीनिया के नीचे कुरु प्रदेश –पौराणिक उत्तर कुरु है, जिसे आजकल नमरूद कहते हैं । उसे उस काल में कलेरबी कहते थे। नमरूद से हटकर असुर निमरी में बस गए । आगे यही प्रदेश असीरिया - असुरों का देश प्रसिद्ध हुआ। यहां के निवासियों की जाति पाश्चात्य इतिहासवेत्ता असी बताते हैं । यह असी असुर का ही लघु रूप है । सूर्य के श्वसुर विश्वकर्मा- त्वष्टा यहीं के महिदेव थे। ईसा से कोई सत्ताईस सौ वर्ष पूर्व