असुर स्वतन्त्र राजा हो गए थे। असुर रानी शशि और आदित्यों में ईसा से पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व एक सन्धि हुई और ईसा से तेरह सौ वर्ष पूर्व असुरों ने बेबीलोनिया को देवों से छीन लिया , परन्तु फिर हारकर वे देवों की प्रजा बन गए। ईसा से पूर्व ग्यारहवीं शताब्दी में असीरिया फिर स्वतन्त्र हो गया । मितानिहितैति , ईलाम , बेबीलोनिया और मिस्र देशों को असुर नरेश सरगन व उसके उत्तराधिकारियों ने ईसा से पूर्व 722 में छीन लिया । फिर असुर वेणीपाल ने ई. पू . 648 में बेबीलोनिया तथा 645 में सुआ इंदावोगश इन्द्रदेव से छीनकर देवों के राज्य इन्द्रासन का सदा के लिए अन्त कर दिया । इसके बाद सम्भवत : ये आदित्य मुलतान होकर भारत में आए। उन्होंने सिन्ध के तट पर मूलस्थान नगर बसाया जो आगे चलकर मुलतान के नाम से प्रसिद्ध हुआ । यहां जगद्विख्यात सूर्य का मन्दिर महमूद गजनवी के अंतिम आक्रमण तक स्थापित था तथा तब भी उसकी वैसी ही ख्याति थी । इस प्रकार ई. पू. 2400 से ई . पू. 345 तक सुषा प्रदेश सुरों का सुरपुर बना रहा पीछे वह असुरों का प्रदेश बना । संभवतः सुरों के विरोधी होने से ही इन्हें असुर कहा गया है। प्राचीन इतिहासकार डियोडोरस , प्लाहमी , टालोमी , टाड, कनिंगहम और चीनी विद्वान् प्राचीन ईरान के लोगों की दो जातियां बताते हैं - एक सुर और दूसरी असुर। पर वे यह नहीं बता सके कि वे कौन थे। वास्तव में ये दोनों जातियां सुर और असुर ही थीं । ये असुर ही सेमेटिक सभ्यता के जनक हैं , जिस प्रकार सुमेर सभ्यता के जन्म - दाता आदित्य देव हैं । असुर सम्राट् नमरूद ने राज्यशक्ति प्राप्त कर दजला के किनारे निनवे को अपनी राजधानी बनाया । पहले असीरिया का राज्य बेबीलोनिया साम्राज्य के अन्तर्गत था । बाद में स्वतन्त्र हो गया । बेबीलोनिया का राजा धर्माध्यक्ष के अधीन होता था , परन्तु यहां का राजा स्वयं धर्माध्यक्ष बन गया और वही राज्य में सर्वेसर्वा हो गया । धीरे - धीरे असुरों का बल बढ़ता गया और बेबीलोनिया की शक्ति का ह्रास होता गया । प्रथम तिगथल पिलेसर ने साम्राज्य -विस्तार का कार्य प्रारम्भ किया । उसने कई स्थान असीरिया में मिला लिए । बाद में मिस्र को भी जय किया । द्वितीय असुर नासिरपाल की विजयिनी सेनाओं ने चारों ओर आतंक जमा दिया । यह एक निर्दयी राजा था , जिसने नगर - देश जलाकर छार कर डाले । लोगों को तलवार के घाट उतार दिया । परन्तु द्वितीय शालमनसेट के काल में असुरों की सेना लूट - मार छोड़कर देशों को विजय करने में जुट गई । फलत : असुर - राज्य साम्राज्य में परिवर्तित हो गया । कला - कौशल को भी प्रश्रय दिया गया । अनेक राजाओं ने अधीनता स्वीकार कर ली । फिलस्तीन का युद्ध -स्थल अधिकृत होने के बाद तो पश्चिमी एशिया में यह सर्वप्रथम हो गया । ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में यह साम्राज्य ढीला हआ । सेना और करद राज्यों ने विद्रोह कर दिया । धीरे - धीरे पुराने राज्यवंश लुप्त हो गए और पुलु नामक एक सैनिक ने सिंहासन हस्तगत कर लिया । इसने इसके विद्रोही राज्यों को दबाकर असीरिया का साम्राज्य फिर दृढ़ किया । इसके वंश में अनेक राजा हुए और उनके काल में बहुत उलट- फेर होते रहे । अन्त में ई . पू. 637 में इस साम्राज्य ने मिस्र को जय किया और साम्राज्य को बारह प्रदेशों में बांटकर प्रत्येक पर एक - एक शासक, स्थापित कर दिया । सेमाचेरिव ने प्राचीन नगर बेबीलोन का विध्वंश कर दिया । उसके उत्तराधिकारी इशारदन के राज्यकाल में साम्राज्य की दो राजधानियां हो गईं। पीछे इसके मरने पर साम्राज्य दो टुकड़ों में बंट गया ।
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