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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१२३

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माधवी - मण्डप में अकेली वह असुर - सम्राज्ञी रावण ही के विचार में कुछ अनमनी सी बैठी थी । उसका मन परस्पर विरोधी भावों से आन्दोलित हो रहा था । उसके आग्रही स्वभाव और दुर्दमनीय इन्द्रिय -लालसा का नारी - धर्मनीति से द्वन्द्व चल रहा था । उसका प्रेमी रमणी- हृदय परस्पर विरोधी आवेगों से अधीर हो रहा था । एकाध बार रावण से उसकी कुछ एकान्त -वार्ता हुई थी । असुरराज शम्बर ने उसका आत्मीय की भांति अपने घर में स्वागत किया था और सम्राज्ञी से अपने बहनोई का सब भांति सत्कार कर उसे संतुष्ट रखने का बारंबार अनुरोध किया था । उस समय असुरराज पर देवों और आर्यों का एक अभियान होने वाला था । उसके लिए समूची असुरपुरी वैजयन्ती में भारी तैयारियां हो रही थीं । दूर - दूर के असुर भट सन्नद्ध होकर रणरंग मचाने वैजयन्ती में आ रहे थे। असुर -सम्राट इस बार शत्रु से कठिन मोर्चा लेने की भीषण तैयारियों में लगे थे। उसका प्रबल शत्रु देव मित्र पांचाल - नरेश दिवोदास था । यह एक निर्णायक युद्ध का सूत्रपात था , इसी से असुरराज इस युद्ध की ओर से बेखबर नहीं था । इसी से उसने अपने साढू लंकापति रावण के आतिथ्य का भार अपनी पत्नी मायावती पर डाल दिया था । शम्बर मायावती को अत्यन्त प्रेम करता था । उन दिनों असुर , दैत्यों और दानवों की अपेक्षा संस्कृति में आर्यों से अधिक साम्य रखते थे। वे अपने को आर्यों ही की शाखा में मानते थे। इसी से विवाह-मर्यादा उनमें आर्यों ही के समान थी । मायावती भी आर्य- ललना की भांति स्त्री - नीति तथा स्त्री - धर्म को समझती थी , यद्यपि आर्य - ललना होने से वह अपने अवरोध में स्वतन्त्र थी - बन्धनमुक्त थी । उन दिनों असुर महिलाएं आर्यपत्नियों से अधिक स्वाधीनता तथा समानता का उपभोग करती थीं । मायावती जैसी आग्रही स्वभाव की थी , वैसी ही मानवती भी थी । जब वह अपनी गर्वीली चाल से हंसिनी अथवा हथिनी की भांति चलती थी , तब उसकी शोभा देखते ही बनती थी । इस समय अपने मन की चंचलता को छिपाने के लिए उसने सभी दासी - चेटियों को अलग कर दिया था । केवल एक दानवी किंकरी नंगी तलवार लिए लतागृह के द्वार पर पहरा दे रही थी । अपराह्न की सुनहरी धूप छन - छनकर लता - मण्डप में आ रही थी । इसी समय रावण भी उपवन में घूमता हुआ वहीं आ पहुंचा । किंकरी को नंगी तलवार लिए मण्डप के द्वार पर खड़ी देख उसने अनुमान किया कि अवश्य ही मायावती मण्डप में है। वह तेजी से कदम बढ़ाकर उसी ओर चला। किंकरी को देखकर उसने हंसकर कहा - “ लता मण्डप में यदि स्वामिनी हैं तो उनकी सेवा में रावण का अभिवादन निवेदन कर दे। " किंकरी ने जब मायावती को रावण की विज्ञप्ति की , तो उसकी बड़ी - बड़ी चमकीली आंखों में एक मद आ गया । उत्तेजना के मारे उसके उरोज उन्नत - अवनत होने लगे । वह सम्भ्रम उठ खड़ी हुई । किंकरी पीछे हट चली गई। इसी समय रावण ने हंसते -हंसते मण्डप में प्रवेश करते हुए कहा - “ देवी प्रसन्न हों , इस मंगलमयी सान्ध्य वेला में वनश्री की शोभा को आपने अपनी उपस्थिति से कैसा सजीव कर दिया है ! ऐसा प्रतीत होता है कि इस माधवी लता से आवेष्टित मण्डप में छन - छनकर जो अस्तंगत मरीचिमाली की स्वर्णिम रश्मिराशि एकत्र हो गई है, उसे किसी जादूगर ने जैसे एकत्र कर मूर्त रूप दे दिया है। " “ ओह, लंकेश्वर केवल वीर-शिरोमणि ही नहीं हैं - चाटुकार भी वैसे ही हैं । इसी गुण ने शायद मन्दोदरी को मोह लिया है कि कभी वह अपने आत्मीयों को याद भी नहीं