पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१२२

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36. मायावती अपराह्न की मनोरम वेला में मायावती अन्तःपुर की मदनवाटिका के माधवी मण्डप में अकेली ही कुछ विचारमग्न - सी बैठी थी । आयु उसकी अभी अट्ठाईस ही वर्ष की थी , परन्तु अपनी आयु से वह बहुत कम दीख पड़ती थी । उसका रंग तप्त कांचन के समान देदीप्यमान था ही , उसकी भाव - भंगिमा भी बड़ी मोहक थी । उसका शरीर उठानदार था , कद कुछ लम्बा था । ऐसा प्रतीत होता था जैसे अंग से रक्त फूटकर बाहर निकलना चाहता है। लावण्य और स्वास्थ्य की कोमलता का उसके शरीर में कुछ ऐसा सामंजस्य था कि किसी भी तरह सुषमा का वर्णन नहीं किया जा सकता । उसके नेत्र काले और बड़े थे। कोये दूध जैसे सफेद थे। दृष्टि में कुछ ऐसी मादक भाव - भंगिमा थी कि जिससे उसकी आग्रही और अनुरागपूर्ण भावना का प्रकटीकरण होता था । केश उसके भौरे के समान, दो भागों में बंटे थे। उनमें बड़ी कारीगरी से मोती गूंथे गए थे। ध्यान से देखने पर उसकी बाकी भौंहें कुछ घनी प्रतीत होती थीं । कान छोटे , पतले और कोमल थे। शंख के समान कण्ठ , भरावदार उन्नत उरोज और छरहरी देह थी । उसकी देह की सुडौलता देखते ही बनती थी । वह ग्रीष्मकालीन बहुत ही महीन कौशेय शरीर पर धारण किए हुए थी , जिसमें से छन - छनकर उसके शरीर की लावण्य - छटा दुगुनी - चौगुनी दीख पड़ रही थी । उसके छोटे - छोटे सुन्दर पैरों में पड़े सुनहरी उपानहों के लाल माणिक्य नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रहे थे। शम्बर एक प्रतापी पुरुष अवश्य था पर उसकी अवस्था पचास वर्ष से अधिक थी । वह राजकीय आवश्यकता और युद्धों से घिरा रहता था । यद्यपि वह प्रेमी , भावुक और स्वच्छ हृदय का पुरुष था ; परन्तु सच्चे अर्थों में मायावती की मांग का वह पूरक न था । वह एक अच्छा पति था , पर मायावती की उद्दाम वासना पति के स्थान पर प्रेमी चाहती थी । इतने बड़े राज्य का अधिपति पचास वर्ष की ढलती आयु में प्रेमी नहीं हो सकता था । मायावती को कोई संतान भी नहीं हुई थी , इससे भी उसकी वह पिपासा भड़की हुई थी । फिर भी मायावती के चरित्र में कोई दोष न था । उसकी मानसिक भूख मन ही में थी । अपनी मर्यादा, चरित्र तथा दायित्व का उसे पूरा ज्ञान था । __ रावण की अवस्था अभी लगभग मायावती के बराबर ही थी । कहना चाहिए, एकाध वर्ष कम ही थी । रावण निर्द्वन्द्व , हंसमुख, विनोदी, वीर और साहसी था । उल्लास और आकांक्षाओं से उसके रक्त की प्रत्येक बूंद भरपूर थी । माया को देखते ही रावण के नेत्रों में मद छा गया । माया उसकी साली - पत्नी की बड़ी बहन थी , अतः माया से वह न केवल खुलकर हास्य -विनोद ही करता , व्यंग्य -विनोद भी करने लगा। रावण के स्वभाव, विनय , स्वास्थ्य , सौन्दर्य और पौरुष इन सब पर मायावती विमोहित हो गई । एक अज्ञात आकर्षण रावण के प्रति उसके मन में उत्पन्न हो गया । वह रावण को चाहने भी लगी और प्यार भी करने लगी ।