37. असुर का विक्रम वज्र- गर्जना के समान शम्बर के शब्द दोनों के कानों में पड़े । असुरराज कह रहा था - “ अरे विश्रवा मुनि के पुत्र , तेरे शस्त्र कहां हैं , शस्त्र ले । तू कुलीन है , प्रजापति का वंशधर है, लोकपाल का भाई है । मैं तेरा निरस्त्र वध नहीं करूंगा। " असुर- सम्राट् के ये वाक्य सुनते ही मायावती मूर्च्छित हो गई। रावण ने उसे छोड़ दिया । वह नीची आंखें करके शम्बर के आगे खड़ा हो गया । शम्बर ने कहा - “ शस्त्र ग्रहण कर रावण ! " नहीं, आप मेरा निरस्त्र ही वध कीजिए। " " यह मेरे कुल की मर्यादा नहीं। ” “किन्तु मैं शस्त्र ग्रहण नहीं करूंगा। " " तो मल्लयुद्ध कर । " शम्बर ने अपने हाथ का शूल दूर फेंक दिया । परन्तु रावण उसी भांति सिर नीचा किए खड़ा रहा। शम्बर ने कहा - “मैं विलम्ब और आज्ञा की अवज्ञा सहन नहीं कर सकता , रावण । ” __ “मैं आपसे युद्ध नहीं करूंगा। " " नहीं कैसे करेगा रे, लम्पट , परस्त्रीगामी , चोर! ” असुर ने एक लात मारी । लात खाकर रावण भूमि पर जा गिरा । असुर ने कहा - “ युद्ध कर ! " “ नहीं , किन्तु तुम अब मेरा वध करो असुरराज । " “ वध नहीं , पाद- प्रहार करूंगा। " “पाद-प्रहार नहीं। अनुग्रह मांगता हूं, तुम मेरा वध करो। " परन्तु असुर ने फिर रावण की छाती पर लात मारी । इस बार रावण लात खाकर गिरा नहीं। दो कदम पीछे हट गया । उसने कहा - “ असुर शम्बर, अब बस करो। बहुत हुआ । दोष -निवारण हो गया । मैं तुम्हें क्षमा करता हं , अब मुझे जाने दो । " " तू ऐसा जघन्य अपराध करके जीवित जाएगा मेरी पुरी से ! " “ किन्तु मैंने तुम्हारा कोई अपराध ही नहीं किया । " “ अरे लम्पट , अपराध नहीं किया ? तूने क्या मेरी पत्नी से बलात्कार की चेष्टा नहीं की ? " “ स्त्री और पृथ्वी वीरभोग्या हैं -फिर असुरों की स्त्रियों पर किसी का एकाधिकार नहीं, वे सभी के लिए हैं । " ___ “किन्तु मेरी यह लात केवल तेरे लिए है। ” असुर ने फिर रावण के वक्ष पर लात मारी । इस बार रावण ने असुर का पैर पकड़कर उसे अपने सिर के चारों ओर घुमाकर दूर फेंक दिया । शम्बर घूमते हुए चक्र की भांति एक धनुष दूर जा गिरा। इस बीच रावण ने अपना कुठार उठा लिया ।
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