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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१४८

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45. देव - सान्निध्य हिमाचल के अंचल में छद्मवेशी रावण कुबेर की अलका के चारों ओर घूम-फिरकर सब घाट- घर देखने लगा । घूमते- घूमते वह शरवन में जा पहुंचा। यह शरवन सूर्य की धूप में सुवर्ण, सूर्य और अग्नि के समान चमक रहा था । यहां शरवन में कास इतना ऊंचा था कि रावण को आगे की राह ही नहीं मिली। रावण अभी विमूढ़- सा हो इधर - उधर देख ही रहा था कि एक विकट पुरुष उसके पास आया । उसने रूखे स्वर से पूछा " तू कौन है रे पापिष्ठ, कैसे तूने इस अगम वन में आने का साहस किया ? " रावण ने उससे तनिक भी भयभीत न होकर कहा " तू ही कह, तू कौन है और किस अभिप्राय से तू इस वन को अगम कहता है ? " । " अरे , तो तू क्या नहीं जानता , यहां भगवान् रुद्र का निवास है ? यह कैलास की उपत्यका है । " _ “ यह रुद्र कौन है, जिसका नाम लेकर तू मुझे डराता है ? " “ देव - दैत्य - पूजित भगवान् को तू नहीं जानता है ? अब भाग यहां से । इस अगम क्षेत्र में प्राणियों का आना निषिद्ध है । यहां मेरी चौकी है। " " तू कौन है? " “ मैं भगवान् रुद्र का किंकर नन्दी हूं । " " तेरे भगवान् रुद्र रहते कहां हैं ? उन्हें मैं भी देखना चाहता हूं। “ तेरा दुस्साहस है । जा , जा , भाग जा । भगवान् रुद्र के दर्शन यों ही नहीं होते , साधना से होते हैं । " " कैसी साधना से ? " “ वह तुझ अपात्र से मैं क्या कहूं ! तू यदि भगवान् रुद्र के कोप का भाजन नहीं होना चाहता है तो जल्द भाग जा । " " पृथ्वी पर विचरण करने का हर एक प्राणी को अधिकार है । और मुझे तो ऐसा विचरण प्रिय है। तेरे रुद्र के कैलास को भी मैं देखना चाहता हूं , चल । " इतना कहकर रावण हंसकर पर्वत पर चढ़ने लगा । नन्दी ने बाधा डालकर कहा - "मैं कहता हूं - भाग जा , आगे न बढ़ , यह अगम क्षेत्र है। " पर रावण नहीं माना , तो नन्दी ने उसे पकड़कर पीछे ठेल दिया । इस पर रावण ने अनायास ही उसे उठाकर दूर फेंक दिया । उस पुरुष का ऐसा बल देख नन्दी आश्चर्यचकित रह गया । नन्दी में अमोघ बल था । रावण की ओर देखकर बोला - “ तू सत्त्ववान् पुरुष प्रतीत होता है । आ , मुझसे मल्ल -युद्ध कर। " रावण तैयार हो गया । बहुत देर युद्ध करने के बाद रावण ने नन्दी को पछाड़ दिया । इस समय तक शोर - शराबा सुनकर बहुत - से गण वहां आ गए थे। वे सब मिलकर शोर मचाने और शस्त्र चमकाने लगे । नन्दी ने कहा - " नहीं, इसे मारो मत , यह सत्त्ववान् पुरुष है ,