पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१८१

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“ और मैं रक्षेन्द्र की प्रजा और छोटी बहन हूं। " " प्रजा नहीं, बहन , प्राणाधिक बहन , परन्तु मेरे दायित्व को भी तो तू देख । विद्युज्जिब तेरे ही कथनानुसार सुन्दर और बुद्धिमान तरुण होने पर भी विपन्न , निराश्रित है । वह तेरे लिए अनुपयुक्त पति भी प्रमाणित हो सकता है। अभी कैसे हम निर्णय कर लें ? कैसे मैं तुझे उससे विवाह करने की अनुमति दे दूं? ठीक यही है कि विवाह की बात अभी रहने दे। तू प्यार करती है तो कर। पर जल्दी न कर । मुझे भी उस पुरुष से कुछ प्रभावित होने दे। ” ___ “किन्त रक्षेन्द्र कैसे मझे विवाह से वंचित रखना चाहते हैं ? हम दोनों परस्पर सख्य रखते हैं । हम एक - दूसरे के पूरक हैं , ऐसा मेरा विश्वास है। इसमें बाधा उपस्थित करके रक्षेन्द्र मेरे साथ न्याय नहीं कर रहे हैं । ” ___ “ मैं स्वीकार करता हूं कि तू उस आयु को पहुंच चुकी है कि दाम्पत्य सुख को ग्रहण करे । मैं अवश्य तेरा विवाह करके प्रसन्न होऊंगा। विद्युजिह्व के विरुद्ध भी मुझे कुछ कहना नहीं है, पर मैं यह अवश्य चाहता हूं कि तू एक निरापद और आनन्दमय जीवन का आश्रय ले । " “ यह सब व्यर्थ है। मैंने विद्युज्जिह्व से ही विवाह करने का निश्चय कर लिया है। " “किन्तु मैंने तुझसे प्रजंघ के संबंध में जो बात कही ? " “ मैं तो उस पुरुष को जानती भी नहीं। " " क्या तू उससे मिलना चाहती है ? " "बिल्कुल नहीं। ” " तू उसके साथ भाग क्यों नहीं जाती ? " “ मैं क्यों भागूं? मैं तो विद्युज्जिह्व के साथ विवाह करूंगी। " “ सो उसमें क्या बाधा है ? पुरुषों के गुण -दोषों का कुछ ज्ञान तो तुझे हो जाएगा। " “ मैं समझती हूं, मैं उतनी मूढ़ नहीं हूं, भाई ! ” “विद्युज्जिह्व के साथ तो तेरा बहुत ही अल्प सम्पर्क रहा है। " “किन्तु आत्मा की गहराई तक । हम लोगों ने कभी भी प्रेम के संबंध में बातचीत नहीं की । केवल प्रेम किया है। किन्तु मैं उससे कितनी प्रभावित हूं, यह रक्षेन्द्र सोच भी नहीं सकते। " " बहन , मैं तेरे प्रेम का अभिनन्दन करता हूं। " " तो भाभी से कह दिया जाए, वे क्यों विद्युज्जिब को शंकालु होकर देखती हैं ? " " बहन , वह केवल तेरी भाभी ही नहीं, राजमहिषी हैं तेरी अभिभावक भी हैं । " “ आप भी तो राक्षसेन्द्र हैं , सारी ही रक्ष -जाति के अभिभावक , सो आप क्या मेरे जीवन पर अपना अनुशासन रखेंगे ? " " नहीं बहन , नहीं । " " तो महिषी से भी कह दीजिए। वे आ रही हैं , अभी कह दीजिए। " मन्दोदरी ने आकर पूछा- " क्या मुझसे तुम्हें कुछ कहना है ? " “ मैं महिषी और रक्षेन्द्र से यही निवेदन करना चाहती हूं कि मेरे जीवन पर किसी का अनुशासन नहीं है। "