" इससे क्या होगा ? " “ पता चल जाएगा कि क्या वह दूसरों की अपेक्षा श्रेष्ठ गुणों का स्वामी है ? क्या वह दूसरों की अपेक्षा तेरे जीवन को अधिक सुखी कर सकेगा ? तू यदि अपने जीवन को प्यार करती है , तो विद्युज्जिह्व या और किसी को अपना अन्धा प्यार मत दे। उसी को अपना समर्पण कर , जो तुझे तेरा सबसे अधिक मूल्य चुकाए सबसे अधिक प्यार करे । मैं नहीं चाहता कि तू विद्युज्जिह्व को अन्धा प्यार देकर अपने जीवन को कष्ट में डाल दे । मेरा कहना यही है कि प्राथमिकता तू अपने ही जीवन के प्यार को दे विद्युजिह्व के प्यार को नहीं । जो तेरे जीवन को प्यार दे, उसे ही तू प्यार कर , पर अपने जीवन से अधिक नहीं। " “ यह सब सोचकर ही तो मैंने विद्युज्जिह्व को प्यार किया है । " “ अच्छा कह, वह कैसा पुरुष है ? " " दर्शनीय, स्फूर्तिमय और छरहरा शरीर -उदग्र और साहसिक । देखोगे तो पसन्द करोगे। " “ यह हुआ आकर्षक व्यक्तित्व । किन्तु गुण , विशेषताएं , आचरण ? " “ वह एक मेधावी और दूरदर्शी तरुण है। अपनी आयु से अधिक वह गम्भीर है । अपने कर्तव्य का ज्ञान है। उसका सहवास मुझे सुखकर है, उसके सान्निध्य से मैं निश्चिन्त हूं । " “ यहीं मैं सन्दिग्ध हूं । अच्छा , क्या उसमें कुछ दोष भी हैं ? " “ एक भी नहीं , वह एक आदर्श तरुण दानव है। " " उसके पारिवारिक जीवन के संबंध में तू कुछ नहीं जानती है ? " " इतना ही जानती हूं कि उसका पिता चिरप्रवासी है। घर नहीं लौटा है और उसकी माता ने एक दश्चरित्र और जआरी दैत्य को घर में डाल लिया है । अब वे दोनों उसके वैरी हैं । उन्हें भय है कि अब वह समर्थ होकर उनसे अपने पिता की सम्पत्ति न छीन ले । वे उसे खपा डालने पर तुले हैं । इसी से वह भागकर लंका में आ छिपा है । वह एक उपेक्षित और अनादृत पुत्र और निराश्रय तरुण है । " “ इसी से तेरी उसके प्रति इतनी आसक्ति है ? " “ प्रथम सहानुभूति हुई , फिर प्रेम और अब आसक्ति । " " क्या उसका कोई प्रिय बन्धु -बान्धव नहीं है? " “मैं हूं और मैं रक्षेन्द्र से अनुनय करती हूं कि उसे अपनी शरण में ले लें । " “ वह किस वंश का है ? " " कालिकेयों के वंश का । " “ अरे, वे तो हमारे शत्रु हैं । " " परन्तु वह तुम्हारा बान्धव है, चिर अनुगत । " " कब से तु उसे जानती है। " “ अब यह वर्ष समाप्त होता है। " “ मातामह को तो वह भाया ही नहीं। " " कैसे भा सकता था ! तरुणों के हृदय को ये वृद्ध थोड़े ही समझते हैं ! " " ठीक है। परन्तु बहन , मैं वृद्ध नहीं हूं - फिर भी ज्येष्ठ हूं। "
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