पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१८८

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पास काफी बोझा था , परन्तु वह बिल्कुल तरोताजा था । एक जीर्ण किन्तु विशाल घर के फाटक पर आकर वह तनिक ठिठका। फिर वह भीतर घुस गया । उस समय घर के विशाल प्रांगण में अंधेरा छाया था । कोई पुरुष भी वहां न था । वह दालान पारकर भीतर चला गया , जहां बहुत - से राक्षस, दैत्य , दानव , नर, नारी , बालक बैठे खा - पी रहे थे। सबके हाथों में बड़े - बड़े भुने हुए मांस - खण्ड थे और मद्य के भरे भाण्ड उनके आगे धरे थे। वह उन पर भेड़ियों की भांति जल्दी-जल्दी तीखे दांतों का प्रहार कर रहे थे तथा मद्य पी रहे थे। विद्युज्जिह्व ने कन्धे का भार एक ओर सहन में पटक दिया , फिर उसने इधर - उधर देख एक राक्षस लड़की को संकेत से निकट बुलाकर कहा - “ अरी सरमा , इन पक्षियों को मेरे लिए झटपट अभी भून ला । जल्दी कर और नमक भी संग ही ले आ । " राक्षसबाला मृत पक्षियों से भरा चमड़े का झोला लेकर भीतर चली गई । उसने उलटकर देखा तो उसमें एक सांप भी था । सांप बहुत मोटा था और अभी तक उसके फन से विष और झाग निकल रहे थे। वह उसे हाथ में लिए आई । विद्युजिह्व एक शिलाखण्ड पर बैठकर समूचे सूअर में दांत गड़ा रहा था । सरमा ने कहा - “ यह सांप क्यों लाया है ? " “ फनियर है, खूब चर्बी है इसमें । मेरे लिए भून ला । मजेदार रहेगा । मुझे इसका शौक है। " " और यदि दूषीविष हो गया तो क्या होगा ? " “विद्युज्जिह्व मर जाएगा , और क्या होगा ! तेरा बहुत झंझट छूट जाएगा । जा भाग । ” इतना कहकर उसने सूअर की उरोगुहा में हाथ घुसेड़कर उसका कलेजा खींचकर बाहर निकाल लिया और चाव से खाने और हंसने लगा । सरमा चली गई । थोड़ी ही देर में वह उस सांप को और पक्षियों को समूचा भून भानकर ले आई । विद्युज्जिह्व ने प्रसन्न मुद्रा से उसकी ओर देखा और सांप के खण्ड करके रुच -रुचकर खाना आरम्भ किया । सरमा खड़ी देखती रही। कहा " क्या मद्य लाऊं ? " " ले आ , दो भाण्ड । ” परन्तु सरमा ने एक भाण्ड लाकर उसके आगे धर दिया । विद्युजिह्व ने क्रुद्ध होकर कहा “ अरी कृत्या , मैंने दो कहा था । " " दो ज्यादा हैं । तू संयत नहीं रह सकता । " " तो तुझे क्या ! तू भाण्ड ला । " “ यह है तो । ” “ एक और ला । " “ एक ही यथेष्ट है। " " तू मुझ पर अंकुश रखती है ? " उसने लाल-लाल आंखों से राक्षस - बालिका को देखा। परन्तु राक्षस - बाला फिर भी नहीं गई । खड़ी रही । यह देखकर विद्युज्जिब हंस दिया । उसने खाते - खाते सर्प का एक टुकड़ा उठाकर कहा- “ ले , तू भी खा । "