बनाई गई थीं । इन टहनियों के चारों ओर दरियाई जंगल की घास का जाल पुरा हुआ था , जिन पर गारे का लेप था । छत भी उनकी वैसी ही बनी थी । इन झोंपड़ों में केवल एक छोटा - सा द्वार तथा धुआं निकलने को छत में एक छोटा - सा सूराख था । कुछ झोंपड़े बड़े थे तथा चटाइयों से बनाए गए थे। कुछ झोंपड़े झीलों में पानी पर बने थे, जो उन जंगली जानवरों से सुरक्षित रहने को बनाए गए थे, जो उनके चारों ओर रात -दिन घूमते रहते थे। उनके डर से उन्होंनेझीलों में लम्बे - लम्बे लकड़ी के लठे गाड़कर पानी की सतह से ऊंचा एक चबूतरा बनाया और ऐसे ही चबूतरों पर झोंपड़ियां बना ली थीं । कहीं - कहीं तो पूरे गांव के गांव ही इस प्रकार झीलों में बने हुए थे। जगह- जगह बहुत - से लोग बकरी की खाल के डेरों में रह रहे थे , जहां सारा कुनबा एक ही जगह सिमटकर रहता था । यहां तक कि खराब मौसम में पालतू पशु भी उन्हीं में आश्रय लेते थे। सोने को घास के ढेर , बैठने को कुछ चपटे पत्थर के ढोके , खाना पकाने को मिट्टी के बर्तन और शिकार के लिए शूल , धनुष , परशु और गोफन । कहीं- कहीं नगर के प्रान्त में चपटी ईंटों के घर थे। ये घर बहुत छोटे - छोटे और एकमंजिले थे, पर इनमें सहन था और छतें लकड़ी की थीं , जिन पर गारे का पलस्तर किया हुआ था । विद्यज्जिह्व को जैसे इन झोंपड़ों , झीलों और वहां रहने वालों से कुछ सरोकार ही न था ; वह तेजी से अपने गन्तव्य पर बढ़ा जा रहा था । सामने ही एक पर्वत की उपत्यका थी , वह उसी ओर बढ़ रहा था । अन्ततः वह अपने गन्तव्य पर पहुंच गया । यहां आकर उसने अपनी गति धीमी कर ली । यहां से पर्वत -श्रृंखला शुरू होती थी । शीघ्र ही वह पर्वत के नीचे जा खड़ा हुआ। सामने समुद्र गरज रहा था । हवा तेज चल रही थी और जब वह पहाड़ से टकराती थी तो मेघ -गर्जन के समान शब्द होता था । अब उसने सावधानी से चारों ओर देखा और बिल्ली की भांति निश्शब्द पर्वत की तंग राह पर चढ़ने लगा। थोड़ी ही दूर पर उसे कुछ गुफाएं नजर आने लगीं । छोटी - बड़ी अनेक गुफाएं थीं । उन सबमें राक्षसों और दैत्यों के परिवार रहते थे। किसी -किसी गुफा में से शोर आ रहा था । किसी में से मांस भूनने की गन्ध आ रही थी । वह पाश्र्व में घूमकर उस बड़ी गुफा के द्वार के सामने पहुंचा , जिसके डेढ़ सौ फीट नीचे नदी बह रही थी । इसके दोनों ओर आठ सौ गज के विस्तार में और अनेक छोटी - बड़ी गुफाएं थीं । द्वार के सामने आकर वह कुछ ठिठका । उसने देखा , सामने ही काली काली कोई वस्तु बीच राह में पड़ी है । वही उसके पिता का मृत शरीर था । बहुत दिन से उसने अपने पिता को देखा नहीं था , परन्तु उसने कल्पनाओं और अनुमान से समझ लिया कि यही उसके पिता का शरीर है। उसने झुककर उसे देखा और घुटनों के बल उसके पास बैठ गया । फिर उसने एक लम्बी सांस ली और सिर उठाकर गुफा की ओर देखा । वह गुफा के भीतर प्रविष्ट हुआ । द्वार के भीतरी दालान में एक बूढ़ा राक्षस ऊंघ रहा था । वह बिना उसे जगाए आगे बढ़ गया । यहां प्रकाश था । चर्बी का दीप जल रहा था । सामने छोटी- बड़ी अनेक कोठरियां थीं । बीच में बड़ा हॉल था , जो अष्टभुज स्तम्भों पर आधारित था । उसके सामने स्तम्भों वाला एक लम्बा दालान था , वह उसी दालान में अग्रसर हुआ। स्तम्भों पर हाथी और सिंह के चित्र बने थे तथा उन पर उभरी हुई नक्काशी हो रही थी । अन्त में वह उस प्रमुख गुफा के द्वार पर पहुंच गया जिसके सामने खम्भोंवाला बहुत बड़ा ओसारा था । यहां उसे एक राक्षस ने टोका। राक्षस एक अधेड़ वय का था । उसके
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