पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१९४

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हाथ में धनुष -बाण था । परन्तु अभी उसके मुंह से स्वर फूटा भी न था कि विद्युज्जिब का शूल उसकी पसलियों को पारकर कलेजे को चीर गया । वह घूर्णित हो वहीं गिर गया । इसके बाद वह रंगमहल में प्रविष्ट हुआ। द्वार पर महीन पर्दे पड़े थे। भीतर सुगन्धित द्रव्य जल रहे थे और वहीं उसकी माता बहुत - सी राक्षसी दासियों के बीच पलंग पर सो रही थी । विद्युज्जिह्व की माता का नाम विज्जला था । उसकी आयु चालीस को पार कर गई थी , परन्तु अभी उसका अंग - सौष्ठव और यौवन वैसा ही भव्य और आकर्षक था कि कोई भी तरुण उस पर मोहित हो सकता था । वह सोने के पलंग पर सो रही थी । गुहा में सुगन्धित चर्बी के द्वीप का मन्द प्रकाश था । पास में खड्ग और धनुष - बाण रखे अनेक तरुणी दैत्य और राक्षसबालाएं उसके चारों ओर भूमि पर सो रही थीं । विज्जला की उठान बड़ी आकर्षक थी । वह लम्बे कद की और छरहरे बदन की कमनीय स्त्री मूर्ति थी । उसके नेत्रों में मादकता थी और होठों में रस का भण्डार। वह किसी भी तरुणी सुन्दरी से अधिक आकर्षक थी । शान भी उसकी रानियों जैसी थी । वह कण्ठ में सिंहल के बड़े-बड़े मोती पहने थी तथा उसका कटिबन्ध और वलय स्वर्ण का था । कुछ देर विद्युज्जिब चुपचाप खड़ा अपनी माता के इस भव्य रूप को देखता रहा । फिर उसने उसका पैर पकड़कर खींचा। एकाएक नींद से चौंककर उसने यमदूत के समान विद्युजिह्व को सामने हाथ में विकराल शूल लिए देखा । यद्यपि उसने बहुत दिन बाद पुत्र को देखा था , पर उसने उसे तुरन्त ही पहचान लिया। वह हड़बड़ाकर पलंग से उठ खड़ी हुई । उसने धड़कते हुए हृदय पर हाथ रखकर कहा - “ जात , तू इस असमय में किस अभिप्राय से आया है ? ” “ मातः, मैं पितृचरण के दर्शन करने आया हूं। " " तेरे पिता दो हैं । " “ मुझे एक ही चाहिए। " “ यदि तेरा अभिप्राय हतभाग्य मुचुकुन्द दानव से है तो उसका शव उस चतुष्पथ पर पड़ा है। " “ उसी से अभिप्राय है मातः? " " तो वहीं जा , यहां क्यों आया ? " " तुझे वहीं ले जाने के लिए। " “ मेरा उससे क्या सम्बन्ध रहा ? " “ इस पर मैं विवाद नहीं करता । " " तो कह, तेरा मैं क्या प्रिय करूं ? " " केवल वह शस्त्र हाथ में ले, जिससे तूने उसका वध किया है। " "किस लिए? " " उसी से मेरा भी वध कर । " " तुझसे मेरा क्या विग्रह है, जात ? " “ पर मेरा तुझ पर विग्रह है । " “किस लिए? " " तूने पति - वध किया । "