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पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/१९५

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" मेरा पति सुकेतु राक्षस है। " “ और मेरा पिता ? " " कभी था , अब नहीं। " “ परन्तु यह सब भूमि , सम्पत्ति, पशु, स्वर्ण रत्न , घर , भण्डार तो उसी के हैं । " “ वह मृत हैं , अब मैं उसकी स्वामिनी हूं । " “ और मैं ? " " तू यदि मेरा अनुगत है तो मेरा तुझ पर अनुग्रह है। " “ अनुग्रह है तो शस्त्र ले । " " कैसा शस्त्र ? " "जिससे तूने पितृचरण का वध किया। " “किन्तु क्यों ? " “मेरा वध करने के लिए। " “ मैं तेरा वध नहीं करना चाहती , जात ! “ पर मैं तेरा वध करने आया हूं , मातः! " " तेरा ऐसा धृष्ट आचरण ? " “ क्रोध करने से लाभ न होगा मातः, शस्त्र ले और तनिक उधर खुले स्थान में चल । " " क्यों ? " “ यहां शस्त्र प्रयोग के योग्य स्थान नहीं है। " " तू क्या मुझसे युद्ध करना चाहता है? " " तुझे वध करने से पूर्व मैं तुझे आत्मरक्षा का अवसर देता हूं । " “ अरे कालिकेय , तुझे क्या राक्षसों का भय नहीं है, जो तू यहां निर्भय चला आया ? जा , अभी भाग जा । ” ___ “विज्जला भय और क्रोध से चीख उठी । चीख सुनकर सब प्रहरी राक्षसियां जाग उठीं । वे सब शस्त्र लेकर स्वामिनी की आज्ञा की बाट जोहने लगीं । विद्युजिह्व ने कहा - “ अरी चेटियो , यह माता और पुत्र का विग्रह है । चली जाओ यहां से । यहां तुम्हारा कुछ काम नहीं है । " इस समय विद्युज्जिह्व का विकराल मुख और भावभंगी देख वे सब राक्षसियां डर गईं। उनके मुख से बात न निकली । परन्तु विज्जला ने चीखकर कहा - “ इस निर्लज्ज पुत्र को मेरे कक्ष से निकाल बाहर करो। " । परन्तु किसी का ऐसा करने का साहस न हुआ । इसका कारण विद्युजिह्व का आतंक तो था ही , वे सब विज्जला के दुराग्रह, निर्दय स्वभाव और पति -हत्या के कारण उससे घृणा भी करती थीं । विज्जला ने उन्हें निष्क्रिय देख गरजकर कहा - तुम लोगों ने मेरा आदेश सुना नहीं? ” विद्युज्जिब ने कहा - “ नाहक उनका प्राण संकट में डालती हैं , मातः! तू ही शस्त्र उठा । "