जैसा सन्ध्या के धूमिल प्रकाश में विकसित द्वितीया की क्षीण चन्द्र - कला ; और ऐसा भी होता है कि विषस्य विषमौषधम् । इसलिए जिस कारण से यह स्मरमान्य रोग हुआ है उसी से उसका शमन भी होगा । सो राजकुमार , वह मदालसा तेरे चरण - कमल के रज की संगति की इच्छुक है, वह दासी के समान तेरी इच्छा करती है, सो तू उसकी मनोकामना पूरी कर। मैं न तो चापलूसी करती हूं , न झूठी बड़ाई, न लोभ से कुछ प्रयोजन है । मैंने उसका सच्चा गुण - गान किया है। सद्भाव ही जिसका मूल है और हंसती हुई दृष्टि का विलास ही जिसकी सघन छाया है, उस मदालसा - रूपी राग - तरु का हृद्य रसपान कर , और सब लंका के वासी श्रीमन्त राक्षस जिसकी एक झलक देखने को मरे जाते हैं , तू उसका अंग - संग कर। " दूती के ऐसे वचनों से उन्मत्त - सा हो अक्षयकुमार काम -ज्वर से दग्ध हो भारी -भारी सांसें भरने लगा । फिर उसने दूती से कहा - “ हे चारुभाषिणी , जा , समय - सम्मत कर। "
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