पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/२१८

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स्नानोत्तर यजन कर रहा था , उसने उसी समय रावण को सम्मुख बुलाकर उसका अभिनन्दन करते हुए कहा " स्वस्ति पौलस्त्य, माहिष्मती में तेरा स्वागत है मित्र, मैं तेरा क्या प्रिय करूं ? " " मेरी रक्ष - संस्कृति को स्वीकार करें । " “किसलिए ? " “जिससे आर्य - अनार्य का भेद नष्ट हो , नृवंश एक सांस्कृतिक सूत्र में बंध जाए, वेद ही हमारा सांस्कृतिक केन्द्रबिन्दु हो । " “ सो तो अच्छा है। पर आर्यावर्त से तो मेरा ही विग्रह है, आर्य तो हमें ही बहिष्कृत समझते हैं । " “ पर मैं तो पृथ्वी पर धर्म - जय करने को निकला हूं। " “ यह तो कुछ युद्ध- घोषणा - सी है। " । " जो मेरी रक्ष- संस्कृति स्वीकार नहीं करता, उस पर मेरा यह परशु है। ” चक्रवर्ती ने हंसकर कहा - "तेरी बातों से तो तेरे परशु ही पर मेरा अधिक लोभ है । मैं तेरी तरह ऋषि - कुमार नहीं हूं , क्षत्र हूं । " " तब तो मैं चक्रवर्ती का याजक भी हूं । " " तो परशु को दूर फेंक, मैं अर्घ्य, पाद्य, मधुपर्क निवेदन करूं । " " यह मेरा वेद है, इसे अंगीकार कर! " “ मैं तो अथर्वण का अनुगत हूं। " " तब तो फिर परशु ही है। युद्धं देहि ! ” “मैं तेरे आह्वान पर प्रसन्न हूं। परन्तु अभी तू मेरा अतिथि होकर माहिष्मती में विश्राम कर। फिर मैं तेरी अभिलाषा - पूर्ति करूंगा। " रावण अपने शिविर में लौट आया । दोनों ओर सैन्य की तैयारियां होने लगीं । राक्षसों की सेना दुर्जय थी तथा रावण का तेज असह्य था , परन्तु चक्रवर्ती कार्तवीर्य भी अप्रतिहत था । उसकी सेना में तुण्डिकेरा , शर्यात , हैहय और अवन्तिपति वीतिहव्य की चतुरंगिणी चमू थी । चक्रवर्ती का सेनापति रुरु एक विलक्षण और साहसी सेनानी था । नर्मदा - तट पर यह प्रागैतिहासिक युद्ध हुआ। इस युद्ध में व्यक्ति -विशेष का महत्त्व था । चक्रवर्ती बाज की भांति राक्षसों पर टूट पड़ा । राक्षस बड़े विकट योद्धा थे, परन्तु चक्रवर्ती का भीम विक्रम असह्य था । चक्रवर्ती स्वयं अपनी भीमकाय गदा लेकर , सचमच जैसे सहस्रबाहओं से ही उसे घुमाता हआ काल - रूप हो , राक्षस - सैन्य में घुस गया । उसके उस भीम प्रहार से त्रस्त हो राक्षस इधर -उधर भागने लगे। यह देख प्रहस्त अपना लौहमुद्र ले उसके सामने आया । मुहूर्त - भर दोनों वीर उलझे रहे । अवसर पाकर प्रहस्त ने अपने मुगर का चक्रवर्ती के सिर पर प्रहार किया , पर चक्रवती ने उछलकर उसके प्रहार को निष्फल करके अपनी गदा का करारा वार किया । गदा की चोट से घूमकर प्रहस्त मूर्छित हो भूमि पर गिरा । यह देख शुक, सारण, महोदर और धूम्राक्ष महासेनानियों ने चक्रवर्ती को चारों ओर से घेरकर उस पर सैकड़ों बाणों की वर्षा की । परन्तु चक्रवर्ती ने उनकी तनिक भी आन न मान अकेले ही बाणों की वर्षा कर इन सब राक्षस महासेनानियों को बींध डाला। चक्रवर्ती के दुर्धर्ष तेज से घबराकर सब राक्षस