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अपनी बहन कुम्भीनसी के ये दीन वचन सुन रावण द्रवित हो गया । उसने कन्धे का परशु धरती पर टेककर कहा - " तू डर मत, मधु को मैं तेरे कहने से अभय देता हूं । अब उसे मेरे सम्मुख उपस्थित कर ; मैं उसे साथ लेकर आर्यों और देवों से युद्ध करने जाऊंगा। " रावण के इस वचन से आश्वस्त हो कुम्भीनसी मधु को ले रावण के सम्मुख आई। मधु ने रावण का अभिवादन किया । रावण ने उसका आलिंगन कर कुशल पूछा । फिर मुध ने रावण की मधुपुरी में बड़ी ठाट की पहनाई की । पान , भोज , नृत्य , दीपोत्सव हुआ । गोष्ठी हुई , फिर रावण एक रात मधुपुरी में रह , मधु और उसकी चमू को ले आर्यावर्त में प्रविष्ट हुआ ।