68. उरपुर उन दिनों उरपुर देवलोक में अत्यन्त सम्पन्न नगर था । वहां अनेक देव , अप्सराएं और उरग जन रहते थे। इसकी सुषमा अमरावती से कम न थी । यह नगर काकेशस उपत्यकाओं में आज भी बसा हुआ है । वहां की अप्सराएं देवलोक में सबसे अधिक सुन्दर हुआ करती थीं और वे उर्वशी कहाती थीं । काकेशस या कोहकाफ का यह अंचल अत्यन्त आरोग्यप्रद है। पर्शियन कथाकारों ने इन अप्सराओं को कोहकाफ की परी कहकर इनका परिचय दिया है। यहां पारिजात नाम का एक अम्लान , श्वेत स्थल - कमल होता था जो देवलोक - भर में प्रसिद्ध था । इसकी गन्ध -माधुरी एक योजन तक वातावरण को सुरक्षित करती थी और देवराट् इन्द्र प्रतिदिन इसी पारिजात का अम्लान माल्य धारण करते थे। आज भी संसार - भर में इस प्रान्त का यह स्थल - कमल प्रसिद्ध है । रावण ने वारुणेयों से हेमा अप्सरा के साथ बहत - से रत्न , मणि , सुवर्ण भी क्षतिपूर्ति के रूप में लिए थे तथा हेमा को अपनी बन्दिनी के रूप में पृथक् एक स्थान में रखा था । हेमा इसी उरपुर की निवासिनी थी । वह असाधारण सुन्दरी और मोहक थी । उसके कटीले नयनों के कटाक्ष और उन्नत उरोजों का आकर्षण विलक्षण था । इस बृहद् अभियान में रावण के साथ उसका श्वसुर मय दानव और उनके दोनों पुत्र मायावी और दुन्दुभि भी थे। भली - भांति सैनिक - सन्निवेश स्थापित कर चुकने के बाद रावण ने अपने श्वसुर मय दानव को बुलाया तथा अपने सब मन्त्रियों के समक्ष उसने कहा - “ हे महाभाग, सुम्बाद्वीप में मैंने आपकी कन्या ग्रहण करने के समय शुल्क - रूप जो वचन दिए थे, उन्हें मैंने अब पूरा कर दिया । वारुणेयों से दारुण युद्ध करके आपने अपने शत्रु का हनन किया तथा आपकी स्त्री हेमा अप्सरा का मैंने उद्धार कर दिया , अब वह बन्दिनी यहां उपस्थित है। स्वेच्छा से अकारण अपने पुरुष को त्यागकर जो स्त्री चली जाए और दूसरे से रमण करे , वह दण्डनीय है। ऐसी स्त्री को शौर्य से फिर हस्तगत करना धर्म है तथा उस कुल - त्यागिनी पंश्चली का वध करना भी कुलीन मर्यादा है। परन्तु शौर्य से मैंने उसका उद्धार कर दिया , अब कुल -मर्यादा के अनुसार कार्य करना आपका धर्म है । यह खड्ग है, लीजिए और उस कुल -त्यागिनी , कुलटा स्त्री का शिरच्छेद कर अपने प्रतिष्ठित कुल की प्रतिष्ठा सुरक्षित कीजिए जिससे लोक में उदाहरण रहे। ” इतना कहकर रावण ने खड्ग अपने श्वसुर मय दानव के हाथ में दे दिया । मय ने कहा - “ हे सौम्य , तुने अच्छी धर्म-मर्यादा कही। मैं भी यही ठीक समझता हूं और अभी उस कुलटा कुल -त्यागिनी का हृदय इस खड्ग से निकालकर भक्षण करूंगा। अब उसके कलंकित जीवन से मुझे क्या ! ” इतना कहकर मय दानव खड्गहस्त उस कारागार में गया , जहां उसकी पत्नी हेमा अप्सरा बन्दिनी थी , जिसके वियोग में वह अपना राज्य , नगर त्याग चौदह वर्ष वन - वन और देश - देश की खाक छानता रहा था । परन्तु जब वह नग्न खड्ग हाथ में लिए उसके सम्मुख पहुंचा, तो उसने देखा कि वह
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