त्रिलोकपति है, मुझसे संबंध करके तू सुप्रतिष्ठ होगा । " " ठीक कहा, ठीक कहा ! " " परन्तु उस पुरुष ने कहा मेरी पत्नी मेरे साथ मौजूद है और तुझ जैसी सुलक्षण और स्वाधीनभर्तृका के लिए सौत का होना दुःख का कारण हो सकता है। " “ उस पुरुष ने ठीक ही कहा। ” " परन्तु मैंने कहा इस मानुषी स्त्री का क्या ? इसे तो मैं अभी मारकर खा जाऊंगी, फिर तू और मैं साथ- साथ वन , पर्वत -शिखरों में स्वच्छन्द विचरण करेंगे। " " इसमें अनुचित क्या था ? " “ पर उस पुरुष ने कहा इससे अच्छा तो यह होगा कि यह मेरा छोटा भाई लक्ष्मण है । इसके साथ स्त्री नहीं है, तू इसी से विवाह कर ले । इसके साथ तुझे सौत का डर भी नहीं है ।...मैंने देखा कि वह पुरुष भी कमनीय है । मैंने उसके निकट जाकर उससे कहा - अरे पुरुष , तू भी मेरे ही समान रूपवान है , गुणवान् है , मुझे तेरी भायो बनना स्वीकार है । " “ तूने उस पर अनुग्रह ही किया । " “ परन्तु उसने कहा-मैं तो दास हूं। मेरी भार्या बनकर तो तुझे दासी ही बनना पड़ेगा। " " तेरा अनुग्रह उसने अस्वीकार किया ? " “ इस पर मुझे क्रोध आ गया और मैंने कहा -इस मानुषी स्त्री के ऊपर तुम लोग मेरा तिरस्कार करते हो ! मुझसे ठट्टा करते हो ! ठहरो, मैं अभी इसे खा डालती हूं । जब मैं उस स्त्री पर झपटी तो उस दाशरथि के संकेत से उसके दुष्ट भाई ने पकड़कर निर्लज्जतापूर्वक मेरा अंग -भंग कर दिया -मेरी नाक काट डाली। " “ अक्षम्य है , किन्तु तू शेष कथा कह । " " अंग -भंग हो मुख से रक्त बहाती मैं खर के पास पहुंची और तुरन्त ही मूर्छित हो गई। " __ “ असह्य है, मैं इसका प्रतिकार करूंगा। " "मेरी यह दशा देख , खर ने कहा - अरे, यह क्या हुआ ? किस दुष्ट ने तेरी यह दुर्दशा कर डाली? कह, किस मूर्ख को अपने प्राण भारी हैं ? देवताओं का स्वामी देवराट् इन्द्र जिस रक्षेन्द्र रावण का बन्दी है , उसकी बहन के साथ यह धृष्ट अनाचार किसने कर डाला? देवों , गन्धों और तपस्वियों में ऐसा कौन पराक्रमी आ गया , जिसने तेरी यह दुर्दशा कर दी ? आज मेरे प्राणान्तक बाण उस अपराधी का प्राण हरण करेंगे । कह - कह, बहन , आज पृथ्वी किसका रुधिर पान करेगी ? आज मेरे हाथ से उस अपराधी को देवता , गन्धर्व और राक्षस कोई नहीं बचा सकता । हमारी ही इस भूमि में किसने तुझे पराभूत किया ? होश में आ और उस पापिष्ठ का नाम मुझे बता। ” “ समीचीन कहा खर ने । " " तब मैंने रोते - कलपते उसे सब घटना आद्योपान्त बता दी । यह भी कह दिया कि मैं नहीं जानती कि वे मनुष्य हैं कि देव या गन्धर्व, परन्तु मेरी आकांक्षा है कि जिस पुरुष ने मेरी यह दशा की है मैं उसका हृदय - भक्षण करूंगी। सो वीर, तुम अभी मेरी यह इच्छा पूर्ण करो ।
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