"दाशरथि राम ! श्याम गात , सघन कृष्ण काकपक्ष,विशाल वक्ष, प्रलम्ब - बाहु? ” " वही है, वही है, उसके कंधे बैल के समान पुष्ट हैं । भुजाएं गोल और घुटनों तक लम्बी हैं , सुदर्शना कमनीय कान्ति है । उसे दिव्यास्त्रों का महाज्ञान है । " " तो उसके साथ सीता भी वहीं है - सीरध्वज की अयोनिजा वीर्यशुल्का? ” रावण के नेत्रों में जनकपुरी के यज्ञ के धानुभंग का चित्र घूम गया । उसने कहा - “वह स्त्री चम्पकवर्णी, भीरु और अति कोमलकान्त -प्रभा है न ! ___ “ ऐसा ही है । क्या तूने उसे देखा है ? " “ ऐसा ही मैं समझता हूं , दाशरथि राम ही है वह , परन्तु वह राज्यभ्रष्ट राजबहिष्कृत हो , दण्डकारण्य में कैसे घूम रहा है ? " “पिता की आज्ञा से। " “ क्या एकाकी ही ? " " बस , वह, स्त्री और भाई , तीन ही हैं । " " तीनों ही ने मेरी प्रबल राक्षस -सेना को मार डाला - खर को भी , दूषण को भी ! बड़े आश्चर्य की बात है! __ " चमत्कार ही कहना चाहिए। " " कदाचित्। उसका एक चमत्कार मैंने देखा है - ऐसा मुझे स्मरण होता है। परन्तु यह विग्रह हुआ क्यों ? " " अकारण ही भाई , मुझे सूचना मिली - वहां जनस्थान में एक नया तरुण तपस्वी आया है और एक नया आश्रम बनाकर रहने लगा है। तेरा आदेश था कि ऐसा न होने दिया जाए । सो मैं स्वयं ही उसे देखने गई । वहां मैंने उसे देवताओं के समान रूपवान पाया । उसका मुख तेजस्वी, भुजाएं विशाल और नेत्र कमल के समान थे। " “ठीक है, वहीं है! ” “ उसे देख मैं सकामा हो गई । मैंने उससे पूछा - हे सुन्दर पुरुष तपस्वी के वेश में सिर पर जटा धारण किए और संग में स्त्री लिए , धनुष -बाण से सुशोभित , तू कौन है और यहां मेरे इस जनस्थान में किस प्रयोजन से आ बसा है ? " ___ " इस कथन में तो कोई दोष नहीं था । ” । " तब उस पुरुष ने कहा - सुन्दरी , मैं पराक्रमी महात्मा दशरथ का पुत्र राम हूं , मेरे साथ मेरी पतिव्रता पत्नी सीता और आज्ञाकारी भाई लक्ष्मण है। हम लोग माता -पिता की आज्ञा से प्रेरित हो धर्म -पालनार्थ यहां दण्डक वन में निवास करने आए हैं । अब तुम भी अपना परिचय दो । " उस पुरुष के वचन सुनकर मैंने कहा - “मैं विश्रवा मुनि के पुत्र रावण त्रिलोकपति की बहन सूर्पनखा हूं । प्रबल कुम्भकर्ण और धर्मात्मा विभीषण मेरे भाई हैं । इस दण्डकारण्य की स्वामिनी मैं ही हूं । " “ ठीक कहा। " " तब उस पुरुष ने कहा - जानकर प्रसन्न हुआ। अब यहां आने का कारण कहो! " "तब मैंने अपना अभिप्राय उससे कहा कि मैं प्रतिष्ठित रक्षवंश की राजपुत्री हूं ; तुझ पर मेरा काम - भाव है, तू मुझे पत्नी - भाव से ग्रहण कर । मेरा बल अप्रमेय है, मेरा भाई
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