पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/२६८

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नहीं तो नहीं । दशरथ ने उस समय केकय महाराज की बात स्वीकार कर ली । कुछ इस विचार से भी कि पूर्व पत्नियों से सन्तान न होने ही से तो वह विवाह किया जा रहा है । इसलिए यह तो होगा ही कि उसी का पुत्र उत्तराधिकारी होगा । कुछ कैकेयी का रूप - वैभव , उसके पिता का वरिष्ठ कुल भी काम कर गया । दशरथ ऐसी ही प्रतिज्ञा करके कैकेयी को ब्याह लाए । परन्तु दैव - प्रभाव से जब सन्तान हई तो तीनों रानियों को हई और ज्येष्ठ राम थे जो ज्येष्ठ रानी के पेट से पैदा हुए थे। बड़े होने पर राम रूप - गुण - शील और शौर्य में भी सब भाइयों में श्रेष्ठ रहे। धीरे- धीरे दशरथ का सबसे अधिक मोह राम पर ही रहा और अब दशरथ को कैकेयी से की हुई वह प्रतिज्ञा खलने लगी । वे मन - ही - मन राम ही को राज्य का उत्तराधिकार देने की सोचने लगे। राम के ऊपर विशेष प्रीति तो इसका कारण थी ही और भी बातें थीं । राजा बाहरी वंश की लड़की के लड़के को कोसल का राज्य नहीं देना चाहते थे। राम का मातृ -कुल भी कोसल ही था , मानव था , आर्य था , इससे उन्हें राम ही यौवराज्य के योग्य जंचे। यद्यपि राम जन्मतः भी सब भाइयों में बड़े थे, ज्येष्ठा महिषी के पुत्र थे। ये भी बात राम के पक्ष में आती थी , परन्तु कदाचित् उस काल तक ज्येष्ठ पुत्र को ही राज्य मिले यह नियम दृढ़ बद्धमूल नहीं हुआ था । कोई भी पुत्र राज्य का अधिकार योग्यता के आधार पर पा सकता था । यदि आप पुराणों में वर्णित वंशावलि को ध्यान से देखें तो आपको ज्ञात होगा कि वंशावलियों के सम्बन्ध में पुराणों में सर्वत्र ही पिता के बाद पुत्र का स्थान नहीं है , किन्तु वह नाम दिया है जो पिछले व्यक्ति के बाद उत्तराधिकारी होता था । वह व्यक्ति भी सदैव पिछले व्यक्ति का पुत्र नहीं होता था , अपितु भाई, भतीजा , पौत्र अथवा अन्य सम्बन्धी भी हो सकता था । जब जनकपुर में धनष - यज्ञ के बाद चारों भाइयों के विवाह सम्पन्न हो गए , तब ताड़कावध , धनुर्भंग और भार्गव परशुराम के पराभव के वृत्तान्त ने राम के महत्त्व और गौरव को बहुत बढ़ा दिया । अब दशरथ ने यह दृढ़ धारणा बना ली कि जैसे बने , राम को उत्तराधिकार दिया जाए। विवाह के कुछ दिन बाद राम सीता - सहित अपनी ससुराल जनकपुर चले गए और कई वर्ष वहीं रहे । इसके बाद जब राम अयोध्या लौटे तो भरत के मामा युधाजित् भरत , शत्रुध्न और उनकी वधुओं को लेकर उनके ननिहाल केकय ले गए तथा वे बहुत दिनों तक वहीं रहे । यही अवसर दशरथ ने अपनी मनोकामना पूरी करने को ठीक समझा। उन्होंने सभी अधीन राजाओं, रईसों, छत्रधारी नरपतियों को अयोध्या में निमन्त्रित किया । अनेक ऋषिगणों को बुलाया , केवल भरत के मामा -नाना को यह खबर नहीं भेजी , न जनक ही को सूचना दी । जब राजा और राजवर्गी पुरुष , ऋषि और विद्वान् एकत्र हो गए तो दशरथ ने उनके समक्ष अपना प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा - "रघु से लेकर हमारे सभी पूर्वजों ने प्रजा का पुत्रवत् पालन किया है , उन्होंने सदैव प्रजा के हित का ध्यान रखा। मैंने भी यथासामर्थ्य प्रजा को सब प्रकार की सुविधाएं दीं । उनके दुःख को अपना दुःख और उनके सुख को अपना सुख समझा । मेरी इच्छा है कि भविष्य में प्रजा इससे भी अधिक सुखी और समृद्ध हो । किन्तु मैं अब वृद्ध हो चला हूं । मेरे शरीर के अवयव शिथिल हो गए हैं , मुझे अब शान्ति चाहिए। अब मैं अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को अपने स्थान पर नियुक्त कर विश्राम चाहता हूं। राम राजोचित सभी गुणों से परिपूर्ण है। वह धीर है, वीर है, उदार