था । इसकी मुख्य गद्दी प्रतिष्ठान में सारभौम , विदर्भ में धृतिमन्त, उत्तर पांचाल सुदासवंश है में सोमक , दक्षिण पांचाल में रुचिराश्व , मगध में सुधन्वा , कान्यकुब्ज में ऋतुराज , मालव में दुर्जय, विदर्भ में सुबाहु और उत्तरी बिहार में मरुत् के वंशधर राज्य करते थे । अंग में लोमपाद और उत्तर- पश्चिम में कैकय थे। दैत्यों , राक्षसों और असुरों में रावण और मध; ऋषियों में वशिष्ठ, विश्वामित्र. वामदेव - नारद, ऋष्यशृंग , मित्रयु काश्यप , सायकाश्व , देवराट् मधुच्छन्दस , प्रतिदर्श , गृत्समद, अगसा , अलर्क , भरद्वाज आदि प्रमुख थे। दशरथ को वृद्धावस्था तक कोई सन्तान नहीं हुई , वार्धक्य में चार पुत्र हुए । दशरथ की तीनों पत्नियों में बड़ी कौशल्या तो कोसल -वंश की ही कन्या थी । वह दक्षिण कोसलाधिपति भानुमान् की पुत्री थी । इसलिए यह वंश आर्य भी था , मानव भी था , सूर्यवंश भी था । इनके सब आचार -विचार अनुकूल थे । दूसरी मगध के राजा की पुत्री थी , जो कदाचित् दशरथ का करद राजा था । परन्तु कैकेयी की बात इन सबसे पृथक् थी । वह उत्तर - पश्चिमी आनवनरेश की लड़की थी । पाठकों को स्मरण होगा कि सम्राट् ययाति के बंटवारे में अनु को गंगा - यमुना - द्वाबे का उत्तरी भाग मिला था । इस वंश की इक्कीसवीं पीढ़ी में महामानस चक्रवर्ती हुए और उन्होंने सारे पंजाब को जीत लिया । उन्हें सप्तद्वीपपति तथा सप्तसागरों का स्वामी कहते थे। इनके पिता जनमेजय को मान्धाता ने हराया था । उस समय यह वंश दो खण्डों में होकर कुछ पश्चिम को और कुछ पूर्व को चला गया था । महामानस पश्चिम की ओर जानेवालों में से थे। इनके वंश ने सिन्धु सौवीर , केकय , भद्रवालीक , शिवि और अम्बष्ठ राज्य स्थापित किए । इनमें केकय प्रमुख थे। महासागर के पुत्र उशीनर और तितिक्षु थे। उशीनर ने पहले अवनीरस अपनी राजधानी बनाई थी । इनके राज्य - मण्डल में यौधेय , अम्बष्ठ, नवराष्ट्र और कुमिला की रियासतें भी सम्मिलित थीं । उशीनर के पुत्र शिव थे जिन्होंने कपोतों को शरण दी थी । इनके चार पुत्रों ने फिर पश्चिम की ओर बढ़कर वृषदर्भ , केकय , मद्र और सौवीर राज्यों की स्थापना की थी । इस समय सम्पूर्ण पंजाब इन्हीं के अधिकार में था । केकय - नरेश आनव दशरथ की टक्कर के प्रबल स्वतन्त्र नरेश थे। इनकी पुत्री कैकेयी तथा पुत्र युधाजित् थे । कैकेयी मानवती , सुन्दरी , गरिमावती और ठसकदार रानी थी । बड़े राजा की बेटी होने के कारण उसका मान भी बहुत था । सबसे छोटी , सुन्दरी और गुणवती होने के कारण वार्धक्य में राजा उसे प्यार भी बहुत करते थे। उसका अपना अलग महल , नौकर - चाकर , दास - दासी थे। वह स्वतन्त्र प्रकृति की स्त्री थी । युद्ध और आखेट में राजा के साथ जाती थी । यह वास्तव में कुछ तो पितृकुल का प्रभाव था और कुछ ‘ वृद्धस्य तरुणी भार्या’ का मामला था । परन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण और कठिनाई की एक बात थी । जब वृद्धावस्था होने पर भी दोनों रानियों से कोई सन्तान नहीं हुई, तब उन्होंने केकय राजा की पुत्री मांगी । केकय राजा ने इस शर्त पर पुत्री देना स्वीकार किया कि दशरथ के उत्पन्न कैकेयी का पुत्र कोसल राज्य का उत्तराधिकारी होगा । हम बता चुके हैं कि आर्यों की परिपाटी पितृकुल की थी तथा वहां स्त्री का कोई महत्त्व न था । पति ही पुत्र का स्वामी होता था , परन्तु संभवतः आनव -कुल आर्यों की इस मर्यादा को नहीं मानता था । इससे उसने यह प्रण रखा कि यदि दशरथ उसकी पुत्री के पुत्र को ही उत्तराधिकार दें तभी वह अपनी पुत्री दशरथ को देगा ;
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