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बाहुओं में उठा लिया और कुकरी की भांति विलाप करती हुई तथा आर्यपुत्र रक्षा करो ! सौमित्र , रक्षा करो ! पुकारती हुई सीता को रथ में डाल रावण भाग चला। चलते - चलते उसने पुकारकर कहा - “ अरे, जनस्थान में रहने वाले तपस्वियो ! सुनो , यह मैं रक्षपति रावण लंका का अधिपति इस दाशरथि राम की भार्या सीता को हरण करता हूं । राम की यदि क्षात्रधर्म में रुचि हो तो इसकी रक्षा करे। " इतना कहकर उसने वेग से रथ हांक दिया । रथ के खच्चर वायुवेग से उड़ चले । सीता पुकार रही थी - “ आर्यपुत्र , रक्षा करो! सौमित्र, रक्षा करो ! रक्षा करो ! ” सीता का आर्तनाद सुनकर तपस्वी चिल्लाने लगे - “ अरे , बचाओ, बचाओ! धर्मात्मा राम की पत्नी भगवती सीता को यह कोई चोर चुराए लिए जा रहा है। "