पृष्ठ:वयं रक्षामः.djvu/२८४

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80. जटायु का आत्मयज्ञ इसी समय किसी ने वज्र -गर्जना की भांति कहा " ठहर रे पापिष्ठ, तू पराई स्त्री को चुराकर कहां भाग रहा है ? " रावण ने देखा - जटायु क्रोध से भरा दौड़ा चला आ रहा है । आकर उसने रावण के रथ की अश्वतरी की वल्गा एक झटके के साथ पकड़ ली । अश्वतरी हठात् रुक गई । रावण ने क्रोध करके कहा " तू कौन है रे हतायु , जो मेरे बीच आता है ? ” “ मैं गरुड़ानुज जटायु हूं । यह निन्दित कर्म करने वाले चोर , तु कौन है ? " “ इस बात से तेरा क्या प्रयोजन है ? तू यदि प्राणों से मोह रखता है तो मेरी राह से दूर हो जा ! " ___ “ यह कैसे ? अरे मैं वृद्ध हूं इसी से कहता हूं! पर क्या मेरे देखते तू चोर, पराई स्त्री का यों अपहरण कर ले जाएगा ? " " तू निश्चय ही मरना चाहता है । " “ मैं अभी तुझे रथ से नीचे पटकता हं , ले संभल! " इतना कहकर जटायु ने टांग पकड़ रावण को रथ से नीचे खींच लिया । रथ से नीचे गिरकर क्रोध से लाल होकर रावण धनुष ले जटायु पर बाणों की वर्षा करने लगा। बाणों से घायल होने पर भी जटायु ने साहस नहीं छोड़ा । उसने निहत्था होने पर भी रावण को पकड़कर भूमि पर धर पटका । बहुत देर तक दोनों में घोर युद्ध होता रहा। वीरवर जटायु ने रावण का कवच फाड़ डाला , धनुष टुकड़े- टुकड़े कर दिया , रथ का छत्र भंग कर दिया और लात - घूसों से रावण को व्याकुल कर दिया । इस समय अनेक तपस्वी भी वहां एकत्र हो गए थे, वे सब कहने लगे - “ अरे कायर चोर , यह भगवती सीता दाशरथि राम की पत्नी हैं । क्या तू उस तेजस्वी राम को नहीं जानता, जिसने जनस्थान को राक्षसों से रहित कर दिया है ? अरे पण्डित , यह भी कोई पराक्रम का कार्य है? तुझे अपने पराक्रम का गर्व है तो तनिक ठहर , वे दोनों भाई अब आते ही होंगे। " । - इसी समय पराक्रमी जटायु उछलकर रावण की पीठ पर चढ़कर बैठ गया और जैसे महावत हाथी की गर्दन पर अंकुश छेदता है, उस तरह उसकी गर्दन का मंथन करने लगा । इससे तिलमिलाकर रावण ने बड़े वेग से जटायु को भूमि पर पटक दिया और वीरों को अशोभनीय रीति से खड्ग निकालकर नि : शस्त्र जटायु पर आघात करने लगा। ऐसे करारे आघात खाकर जटायु लहू- लुहान हो भूमि पर गिरकर छटपटाने और हा राम, हा राम कहने लगा । अपने श्वसुर के मित्र जटायु की यह दुर्दशा देख सीता रथ से कूदकर जटायु से लिपटकर हा तात , हा तात कहकर विलाप करने लगी । उस विलाप करती हुई सीता के बाल पकड़ घसीटता हुआ रावण फिर उसे रथ की ओर ले गया तथा जबरदस्ती रथ पर